Friday, December 24, 2021

रेत और जिंदगी





रेत सी है जिंदगी ,
मुट्ठी से जैसे फिसलती जा रही,
हर कण, हर दिन की तरह ढल रही है,
कभी ज्यादा कभी कम गिरती रेत,
जीवन के उतार-चढ़ाव,दुख -सुख की तरह है!

रेत सी है जिंदगी,
मुट्ठी खोल दी एक पल में बिखर जाए,
यूं जिंदगी हो या दिल के दरवाज़े खोल ,
इंतजार क्यों किसी और का खुद की उड़ान में,
झांक अपने अक्स को आइने में,
बस तुम हो जो बदल सकते हो कल को !

माना रेत सी है जिंदगी,
मग़र कण-कण में जिंदगी तो है,
कुछ चमकता सा तो  कुछ धुंधला सा है,
जरा सी रोशनी तो दो खुद के उजालों की,
कण-कण चमकती रेत सा तुम खुद को देखोगे!

है उजाला अपार खुद के ही अंतस में,
दूसरों के उजालों से खुद को चमकाना है क्यों,
जर्रा-जर्रा चमक उठा खुद के उजालों से ,
बस दो चमक खुद के कणों को !

माना रेत सी है जिंदगी,
फिसलती ही जा रही ,मगर
कण-कण चमकती रेत है गवाह,
खुद के उजालों की ....!
महिमा यथार्थ©

आखिर क्यों

    In this modern era,my emotional part is like old school girl... My professionalism is like .. fearless behavior,boldness and decisions ...