Tuesday, December 26, 2023

आखिर क्यों

   In this modern era,my emotional part is like old school girl...
My professionalism is like .. fearless behavior,boldness and decisions as like upcoming generation...


                      
                             मैं अंगो से नहीं, अंग मुझमें निर्मित है,
                            भाव से मैं नहीं, भवनाओं से मैं हूं,
                           हर भाव गहनता से मुझमें, तुम क्या पाओगें,
                           केवल तुम्हारा व्यवहार ही निर्धारित करेगा,
                          स्त्री या पुरुष कुछ भी नहीं, हम बस किरदार है,
                          हर कहीं, हर जगह,हर वक्त !


मैं एक लड़की की आजादी की बात नहीं करूंगी अभी,
मुझे बस आज यह बोलना है कि!
क्यों जब मैंने बोला तो मुझे मुँहफट बोला गया
जब मैं नहीं बोल पायी तो दब्बू,बददिमाग,शर्मीली,मर्यादित
व अन्य बोला गया!
क्यों मुझे बोलना पड़ता है अकेले रहना चाहती हूं!

क्यों मैं नहीं बोल पाती कि मुझे इस वक्त तुमसे बात करनी है,
अकेला और खाली महसूस कर रही हूं , जब कोशिश की तब
भी तुम्हारा न समझना ,मेरी हिम्मत तोड़ देता है!
क्यों मैं नहीं बोल पाती हूं मुझे भी काम है,मैं व्यस्त हूं,क्यों मैं यों अचानक
गायब नहीं हो पाती ,शांत नहीं हो पाती,
क्यों हर बार मुझे तुम्हारे काम और व्यस्तताएं याद आ जाती है ,क्यों
मुझे ही  तुम प्राथमिक लगते हो !

क्यों हर बार मैं ही इंतजार करती हूं,तुम्हारे आने, आकर बात करने,बेचैन रह रात काटते रहने का,क्यों मुझे ही समझ आते है तुम्हारे समाज ,काम ,व्यस्तताएं और थकावट !
क्यों हर बार मैं ही गम्भीरता, बेचैनी,दर्द,तकलीफ,प्रतीक्षा,धैर्य  और
खालीपन महसूस करती हूं ,क्यों मेरा दिमाग हावी नहीं हो पाता मेरे दिल  पर !

क्यों मैं ही नहीं कर पाती हूं अपने काम जब -तक मेरे भावनात्मक पहलू खुश न हो,
क्यों अब मैं जब खुल के कह लेती हूं जरूरत है तुम्हारी,अकेलापन महसूस होता है,फिर भी तुम नहीं आते क्यों!

जबकि अब तो मैंने हिम्मत कर इससे मुक्ति दे दी कि तुम समझो मुझे,
मेरी आँखें पढ़ो ,अब तो कह देती हूं हां, गुस्सा आ रहा ,खालीपन लग रहा,
बस बैठे रहो, बातें सुनो ,कुछ न करो बस रहो ,तब भी तुम नहीं होते होते ,
सदियों से बसें इस डर से मैंने लड़ना चाहा लेकिन आज भी यह वहीं है !

तब लगता है मुझे कि स्त्री होना कितना दुःखदायी है ,
न बोलो तो तुम कुछ कहती नहीं, समझ लोगे शायद,
प्यार की बातें और इजहार स्त्री कर दे तो बेक़द्र होती है,
यदि आसानी से उपलब्ध हो जाए तो बेक़द्र होती ही है!
प्राथमिक केवल तुम ही क्यों, क्योंकि तुम्हें आर्थिक नियोजन
करना है!

समझती हूं मैं कि एक पुरुष को सर्वप्रथम उसकी आर्थिकी से ही ,
समाज ने जाना है,इसलिए हमनें स्वयं अपने सर्वस्व गृहस्थ कामों को नीचा मान,
तुम्हें उठाया है ,क्या तुम्हारा फर्ज नहीं था कि समाज में अपनी कद्र की वजह से
हमें अपने घर में, परिवार में वही कद्र दो और समाज से दिलवाओ,  पर
तुमने नहीं किया,इसलिए हमें स्वंय करना पड़ रहा!

स्त्री का मौन हो जाना ही शायद उसकी कद्र बढ़ा सकता है,
लेकिन यह हमारे समाज में प्रेम की त्रासदी है कि धीरे-धीरे ,
बहुत ज्यादा कद्र करने वाले एक दिन मजबूर होकर ,बस
पत्थर ,खामोश और मुर्दा जीवित शरीर में सफ़ल स्त्री मिलेंगी  ,
या अपने पिता ,भाई ,सिर्फ अपने घर और अपनी सबसे बड़ी ताकत बनेंगी !

        Mahima Singh © 

Thursday, December 14, 2023

सिर्फ उम्र को वरीयता देना नहीं जरूरी........!

हमें हमेशा बड़ो की इज्जत करना सिखाया जाता है ,जो कि सही भी है और यह अपना -अपना व्यक्तिगत व्यवहार भी है ,लेकिन यह कभी नहीं बताया जाता है कि बड़े लोगों के सभी व्यवहार, सभी काम,उनके अनुभव ,उनके विचार हमेशा सही ही हो यह जरूरी नहीं है ,इसलिए हमेशा आँख मूंद कर हर बात नहीं मानी जानी चाहिए ,न ही अपने को इस बात से परखना चाहिए कि मैं छोटा हूं तो सामने वाला हर बात सही ही कह रहा है ,इसमें सिर्फ आपकी गलती है ,बेवकूफ़ी है और नादानी है कि आप खुद को कम समझो या पूरी तरह प्रभावित हो किसी से ।
           जबकि बच्चों के साथ बुरा कभी बच्चें नहीं करते है ,अगवा कर लेना,बलात्कार करना, फुसला लेना ,बुरा या अच्छा स्पर्श ...हम अभिवावक बताते है कि ये सही होता है यह गलत होता है लेकिन एक वक्त के बाद मैंने यही पाया है कि हम नहीं बताते कि समाज कैसा है ,कैसे वह दिग्भ्रमित करता है,कैसे आपको बातों से,व्यवहार से छलता है यह सब 95% युवा अपने ही अनुभवों से सीख रहे है जबकि यह बहुत ही आवश्यक है बताना और इतना स्वभाविक  माहौल और व्यवहार घर,परिवार,माँ-बाप का होना चाहिए कि हर बच्चा आ कर  बता सके या आप बता सको ,समझा सको कि कितने पैतरे आजमाए जाते है किसी से काम निकलवाने के लिए ,बच्चों को जब तक एहसास होता है कि उनकी कट गई है या उनका उपयोग किया गया है तब तक वे अपना आत्मविश्वास, अपना अस्तित्व, अपनी इच्छाशक्ति खत्म कर चुके होते है ,बहुत कम ही होते है जो पहचानते है कि उनका अपना अस्तित्व ख़तरे में है और उन्हें बहुत जरूरत है कि वह सिर्फ अपने आप के लिए खड़े हो और बेख़ौक निर्णय ले सके।
    हां, जानती हूं कई लोगों को लगेगा कि कोई इतना बेवकूफ नहीं होता लेकिन सच्चाई यही है कि ज़्यादातर बच्चों को सिर्फ अच्छा ही सिखाया गया है कभी बताया ही नहीं गया कि व्यक्ति का वस्तुकरण शुरू हो चुका है और इसके अनगिनत पहलू है इसलिए उम्र और लैंगिक वरीयता जो समाज ने दिया है उससे ऊपर अपने विवेक और व्यवहारिक पहलू पर काम किया जाना चाहिए और परिवार द्वारा बताया जाना चाहिए ।  जब -जब आप अपनी महत्ता कम करके बार-बार किसी को महत्वपूर्ण और उपलब्ध बनाते हो तो आप बेमोल और बेक़द्र होते हो और यही एहसास आपको आंतरिक रूप से कमज़ोर और आत्मविश्वास विहीन कर देगा ,यह वाकई ऐसा ही है जैसे जीते हुए भी मरे हुए हो जाना ।
          स्वयं को चुनना ,अपने अस्तित्व को चुनना ,अपनी प्राथमिकता को चुनना कभी स्वार्थ नहीं होता है।महिमा यथार्थ©

आखिर क्यों

    In this modern era,my emotional part is like old school girl... My professionalism is like .. fearless behavior,boldness and decisions ...