Tuesday, November 29, 2022

स्त्रीत्व

स्त्रीत्व -वह भाव ,वह अहसास है जो आपको आंतरिक तौर से,भीतर से  खूबसूरत बनाता है।

स्त्रीत्व से परिपूर्ण स्त्री,
चाहती है केवल सम्मान,
अपने  सर्वस्व समर्पण ,
के बाद केवल सम्मान!

स्वतन्त्रता, समानता ये
सारी लड़ाइयां जुड़ी है,
मात्र उसके सम्मान से !

स्त्रीत्व से परिपूर्ण का अर्थ
गहरा है बहुत गहरा है,
जिसे समझना होगा चाहे
स्त्री हो या पुरुष या समाज
तभी इस संसार का संतुलन,
संभव हो पाएगा।
Femininity - that feeling, feeling that
 makes you beautiful from within.

feminine woman,
I just want respect
surrender your all,
Only respect after!

freedom, equality
All battles are connected
Just out of respect for him!

Meaning of Feminine
deep, very deep,
which has to be understood
woman or man or society
Only then the balance of this world,
Will be possible.



Tuesday, November 22, 2022

मेरी भावनाएं-4

मेरी भावनाएं-4

जहाँ तक मेरी समझ में आता है तो किसी व्यक्ति की सफलता, उसका कार्य,उसे क्या करना है यहाँतक कि पूरा जीवन केवल हमारे  निर्णयन
क्षमता का परिणाम होता है।
        बस इस बात को समझना ज्यादा जरूरी हो जाता है कि आप उस निर्णय को समय रहते ले रहे है या समय के अनुसार आपका निर्णय कितना सही है क्योंकि आज आप जो कर रहे ,जो सीख रहे ,पढ़ रहे यही सब हमारा कल निर्धारित करने का संकेत है जैसा कि हमारे "मिशाइल मैन जी " का भी मानना है।
        कई बार हमें ऐसे निर्णय लेने पड़ते है जो आपको आप से जोड़ने ,अपने क्षमता को आंकने ,उसको और अधिक प्रगति करने के लिए लेते है जिसके कारण आपको कहीं न कहीं लोंगो के कुछ उम्मीद भी तोड़ने पड़ते है या यों कहूँ तो टूट जाते है।
      हम अपने सपने को पूरा करने के लिए जब घर अपने क्षेत्र से दूर होते है तो तकलीफ़ आपके साथ ,आपके परिवार, दोस्त सब को होता है क्योंकि हम भावनात्मक रूप से जुड़े है।हम अपने लिए ,परिवार,समाज और राष्ट्र के लिए योगदान देने हेतु एक प्रगतिशील मानव बनने की कोशिश करते है जिसमें बहुत कुछ छूटता है पीछे ,जिसमें सिर्फ आपके लोग नहीं छूटते बस भावनात्मकता और अपने कर्म के बीच आपके कर्म चुनना होता है।
           यही प्रगतिशील विचार ही आज मानव के विकास का सबसे अहम हिस्सा रहा है।मैंने अपने आपको देखा है मैने जितनी बार खुद को ठहराव दिया,या भावनात्मक बंधनो में बाधा है मैंने प्रगति के बजाय अपना अस्तित्व,अपना कर्म ,अपना व्यवहार सब में धूल जमा हुआ पाया ।
"बहते रहना ही नदी की पवित्रता और स्वच्छता का मुख्य कारण है ।"  हिमालय से निकली गंगा ,अनगिनत रास्ते तय करते हुए लगातार बहती आ रही है हा हिमालय क्षेत्र में अनगिनत औषधियों के मिलने और सम्पर्क से आज भी उसकी स्वच्छता बरकरार रही है । इसी तरह अनुशासन,लगन,योग ,आत्मप्रेरणा सब मनुष्य के जीवन में औषधि है ,जो आपको कर्म पथ पर अग्रसर बनाते है।
            अपने अंदर कोमलता, पवित्रता, उदारता ,कर्म निष्ठा बनाये रखना है तो निरंतर बहते रहने की आवश्यकता है,ठहराव और बंधन कहीं न कहीं हमारे व्यक्तित्व को धूमिल करता है। प्रकृति आपकी दुनियां है यह आपको प्यार करती है, सहयोग करती है आपका शरीर ही युद्धक्षेत्र है जिसमें अनगिनत भावनाओं, विचारों से आपको लड़ कर सही निर्णय लेना होता है।
     यह मेरे स्वयं के विचार है।
आगे सफर जारी रहेगा।
राधे राधे✍️
महिमा सिंह©

Sunday, November 20, 2022

मेरी भावनाएं-3

 
मेरी भवनाएं-3

   "मुझे दिन उजालें में तो तोड़ सकते हो ,मग़र
तुम्हे मालूम नहीं ,हर रात मेरा ख़ुदा मुझे जोड़ जाता है ,
जो हर सुबह मुझे सहलां कर जगा जाता है!"

       तमाम लोग क्या सोचते होंगे किसी को नहीं पता ,मुझे याद है कि मैं एक बार बोली अपनी माँ से की मेरे दिमाग में ये सारी बातें चलती है जब भी अकेले बैठती हूं,तब उन्होंने कहां की हम लोग भी सोचा करते थे ,कभी बोल नहीं पाए ,कुछ कर नहीं पाए,फिर सामाजिक जीवन में इतनी व्यस्तता बढ़ गयी,पढ़ाई, लिखाई, शिक्षण कार्य कि सब पीछे छूट गया ।
       मैं अपनी सोच अपने पास रखकर सब खत्म नहीं होने देना चाहती हूं ,इसलिए मैं लिखती हूं  ताकि शायद कुछ बदलाव दे सकूँ ,इस बात में कोई शक नहीं है कि इसकी हिम्मत भी मेरे परिवार के भरोसे और सीख की ही देन है ।

मुझे महसूस होता है मेरे अंदर की निर्मलता ,सोच जो मुझे बहुत ही सकारात्मक दृष्टिकोण से भरता रहता है, जब से सारी बातें समझ आने लगी महसूस होता है कि आख़िर ये प्रकृति को महसूस कर पाना,संवेदनाओं को महससू करना, मेरा आत्मबल मुझे क्यों अलग बनाता है।
            यह ऐसा है क्योंकि इसके पीछे निर्मलता ही है मेरे अंदर जो कुछ भी है वह एक परिणाम है मेरे माता -पिता की साधना ,आध्यात्मिकता,धैर्य ,संतोष मैंने कभी उन्हें इस बात से परेशान होते नहीं देखा कि सामने वाले के पास क्या है और उनके पास क्या नही है।
       उन्होंने हमारे जन्म से लेकर सपनों में हमेशा शिक्षा, एक व्यवस्थित जीवन ,स्वतन्त्र माहौल के अलावा कु छ उम्मीद ही नहीं कि चाहे उनके पास था या नहीं या अभी है या नहीं। उनके अंदर की निर्मलता ही हमारी सोच का परिणाम है। मेरी बहन की सोच उसकी स्वतन्त्रता,  जो मुझे प्रेरणा देता है कि उसने अब तक सिर्फ वह चुना है जिसे वह मानती है कि इससे किसी का दिल नहीं दुःखेगा, उसका प्रेम ,उसकी जिम्मेदारी सब उसे लोगों से बहुत अलग बनाता है वह खुद से ज्यादा दूसरों के लिए जीती है ,ये सब सोच एक सकारात्मकता का प्रतीक है जो कहिं न कहीं परिवार का आध्यात्मिक झुकाव मानो या एक अनन्त सकारात्मकता का स्रोत जिसे ईश्वर मान लो या कोई ऊर्जा जिसका सकारात्म जुड़ाव है । आध्यत्मिकता और अंधभक्ति में कम फर्क है जो बहुत फर्क डाल देता है आपकी सोच ,समझ ,खान -पान पर।
         मेरे लिखने से मेरे काम में व्यवधान नहीं होता है क्योंकि मैं अपने को लिखती हूं मेरा कर्म मेरा है उस पर मेरा ध्यान हमेशा रहता है!
     एक चीज लोंगो से सीखा है
"जब आपके पास कुछ नहीं है तब भी आप संतुष्ट हो ,तब लोगों को लगता है किस्मत खराब है,
जब आपके पास आवश्यकता भर है एक अच्छी स्थिति है और आप तब भी शांत हो ,परे हो दिखावे से ,तब लोग कहते है कि अरे किस्मत साथ दे गई !"
       कर्म को किस्मत का नाम देना ,धैर्य को किस्मत का नाम देना क्या सही है?
किस्मत को सकारात्मकता,ऊर्जा से भी देखा जा सकता है लेकिन आवश्यक है कि अपने अंदर की निर्मलता को पहचाने हम सबसे पहले,अच्छा सोचे लोगों के लिए चाहे वह कोई भी हो,आप खुद को ही हमेशा शांत पाओगे ,यही है सोच का जादू!

   आगे सफर जारी रहेगा .....
राधे राधे✍️
महिमा सिंह©
          

Saturday, November 19, 2022

मेरी भावनाएं-2

मेरी भावनाएं-2

मैं थोड़ा शांत स्वभाव की हूं अपने बाहरी और व्यावहारिक जगहों पर ,लेकिन यह गलत तो नहीं है,मुझे अपने ऐसा होने से प्रेम है क्योंकि मैं अपनो के बीच बच्ची, पागल ,बेपरवाह रहना चाहती हूं अपनी मस्ती में मस्त और बहुत सारा प्यार देने और लेने वाली !
         मुझे अपनों का ध्यान रखना ,उनकी छोटी -छोटी बातों का ध्यान देना ,ध्यान रखना ,अच्छा खाना बनाना ,खाना सब बहुत पसंद लेकिन अपनी मर्जी अनुसार ,किताबें पढ़ना !
      हां ,मुझे व्यवस्थित रहना ,जीना, व्यवस्थित कमरा ,एक छोटा जीवन जीने का स्वानुशासन पसंद है,मुझे प्रकृति से प्यार है मुझे महसूस करना होता है हर चीज चाहे वह हवा हो,पर्वत हो, झरने हो,किसी को तकलीफ़ में देख पाना सम्भव नहीं है ,
अक्सर मेरी नजरें उन पर टिक जाती है जो मजबूर होकर या आर्थिक तंगी की वजह से मलीन बस्तियों में रहने को मजबूर है ,उनके बच्चों की आंखों में सपने के बजाय पेट भरने की उम्मीद है कि काश!मैं सोच कर कांप जाती हूं कि जहाँ हम पैर तक रखना पसंद नहीं करते वहाँ वह अपनी पूरी जिंदगी काट रहे है ! जब भी मेरी नजर ऐसी जगहों पर जाती है मैं अपने आपको शांत करने के लिए एक लंबे रास्ते का तन्हा सफर तय करती हूं ताकि कुछ तो हल कर सकूं, तमाम लोग सोचेंगे कि सिर्फ सोचने और कहने से कुछ नहीं होगा जानती हूं मैं भी लेकिन मैं अपने अनुसार जो कर सकती हूं करती हूं,मग़र मैं शांत नहीं हो पाती।
             मुझे याद है अभी दो दिन पहले की बात है मैं साइक्लिंग के लिए गयी थी और थक कर सड़क किनारें रुकी थी ,एक बच्ची लगभग 15 वर्ष की होगी कूड़ा उठा रही थी क्योंकि उसकी ड्यूटी थी ,वह मेरी तरफ देखी तो मुझे लगा कि उसे बात करनी है मुस्कुरा रही थी,बोली
'दीदी ठंड बढ़ गयी है आपको नहीं लग रही ,मैंने बोला कि मैं साइक्लिंग कर रही हूं तो मुझे अभी नहीं लग रही,लेकिन ठंड बढ़ रही है'
थोड़ी सी बात चीत की बड़ा सुकून मिला जैसे मानो "रेतीले रेगिस्तान में वृक्ष की छाया " उसके मुख से निकलते शब्द मुझे,ईश्वरीय वाणी की तरह कानों को प्रिय लग रहे थे, उसका मुस्कुराता चेहरा मुझे बहुत ही खूबसूरत लग रहा था।
       बुरा तो तब लगता है जब आप अपनी भावनाएं बोलो किसी से और सामने वाले को लगे कि बस बात करा लो,सब ढोंग ही है।
मुझे हँसी आती है कि लोगों की संवेदनाएं मर रही है तो उसमें मेरी कोई गलती नहीं ,अपने आपको शांत और निर्मल बनाए रखना बहुत आसान है यदि आप चाहो!
   मुझे दोस्त वही चाहिए जो साथ दे ,साथ रहे मेरे इस थोड़ी सी व्यवस्थित दुनियां में मेरा बचपन और स्कूलिंग इसलिए बहुत प्यारा क्योंकि सुबह हम दो मैं मेरी दोस्त लम्बी साइक्लिंग करके जाया करते थे ,खेत, खलिहान,बच्चें सब हमारी जीवन के अनमोल हिस्से है ,
     बड़े होने पर लोगों की  इज्ज़त कम होने लगती है पता नहीं कैसे,लोग क्या कहेंगे यह बीमारी जो लग जाती है हम भूल जाते है कि हमें क्या पसंद है ,क्या अच्छा लगता है ,,, फिरहाल अभी मैं थक गई!

आगे सिलसिला जारी रहेगा✍️
राधे राधे
महिमा सिंह©

Friday, November 18, 2022

मेरी भावनाएं-1

"कई रास्तों का सफ़र तय किया है मैंने,
और थक कर,ठहर कर  हर बार देखा,
मेरे अंदर आता रास्ता ही मेरा सुकून है!"

          
       कहीं तो जाना था मुझे कहीं तो पहुँच रही हूं कुछ सवाल मन में उलझें हुए कोई जवाब तो पाना है मुझे । ढूढ़ रही मगर बेचैन भी नहीं हूं शांत हूं मगर सब धुंधला  सा है ,कश्मकश में हूं समाज, कायदे, मर्यादा ,स्वाभिमान कर्म ,मन की शांति क्या चुन लूँ और क्या छोड़ दूं, कहीं तो जाना था मुझे कहीं तो पहुँच रही हूं।
      अपने मन के कुछ बात लिखने का मन है मेरा तो सोचा चलो कुछ यों ही हाल-ए-दिल बयाँ करते है।
     कई बार आता है कि चलो उन रास्तों को एक सही मंजिल तक ले चलूँ जिन रास्तों की शुरुआत मात्र लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है ,जिन रास्तों का सफर मेरे माँ- बाप  से शुरू हुआ ताकि लोग भी समझ सके कि लड़कियां बोझ नहीं आपकी ताकत है ,आपकी खुशी हैं ,शिक्षा अधिकार है उनका और भरोसा करो वह तुम्हें आसमाँ की झलक दिखाएंगी ,काफ़ी हद तक मैंने देखा मेरा रास्ता लोगों की प्रेरणा हैं ।
    अपने उन रास्तों में लगें रुकावटों को कम करने की कोशिश करूँ ताकि उनके मन में केवल सपना हो डर के वगैर ,ताकि आने वाली पीढ़ी को यह न लगे कि आख़िर हम लड़कियों को ही टिप्पणी का दंश क्यों झेलना होता है ,ताकि कोई माँ -बाप ये न कहें कि भोकने दो तुम हाथी की तरह अपने सपने पूरे करो,ताकि वह निर्भीक होकर आ जा सके ,मैं कोशिश कर सकूं की सुरक्षा बढ़ जाये और उन रास्तों पर आज़ाद कोई लड़की पढ़ने आ जा सके ।
मुझे लगता है कि इस सफर को अंजाम देना ही मेरा कर्तव्य होगा ताकि हर माँ-बाप सोचे कि लड़की का  आत्मनिर्भर होना ही  सबसे प्रथम प्राथमिकता है।
              एक तरफ मेरे जीने का सलीक़ा मुझे शांतिपूर्ण तरीके से ,अनुशासन में बिना किसी बाहरी रुकावट के मस्ती में जीवन व्यतीत करने का करता है ,मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है घरेलू पंचायत में ,मेरी रुचि बस मात्र इतनी है कि दिन सूर्यदेव के प्रणाम से शुरू होकर किताब के कुछ पन्ने लिए हल्के प्यार की थपकी के साथ खत्म हो।
        फिर दिमाग में आता हैं जैसा कि हमारा सामाजिक रीति बनी हुई है मुख्यतः उत्तर भारतीय परिदृश्य में कि लड़की की शादी मतलब लाखों से भी अधिक खर्चे ,अगर नौकरी नहीं करती हूं तो दहेज के दबाव मेरे माँ बाप को होगी जिन्होंने तो सिर्फ हमें आत्मनिर्भर बनाने में सर्वस्व लगाने की कोशिश कि , मुझे दहेज जैसी रीति में कोई रुचि नहीं है ,फिर आता है कि अपने किताबों के मूल्य,अपने सभी भारतीय धार्मिक स्थलों की जानकारी और उनकी शक्ति को महसूस करने की जो ईच्छा है उनके ख़र्चे,दाना डालने के लिए पैसे, अपने खान-पान के खर्चे ,किसी को मदद देने के लिए पैसे ,कहां से आएंगे इसलिए आत्मनिर्भर तो होना ही हैं।
        कभी -कभी लगता है कि शादी कर ले फिर सोचते है इन सब सामाजिक उलझनों में फँस कर कही मैं अपने अस्तित्व ,अपने संवेदनशीलता को न खो दू ,उन तमाम कहानियों की आंतरिक प्रेरणा ,सोच को न खो दू जिन्हें जानना ,लिखना मेरा हक और ईश्वर का आदेश है ,उन तमाम सूख चुकी आँखों ,भूखे बच्चों की आशा उनकी उम्मीदों को न खो दूं।
        उस प्रेम को अपने अंदर ही कैसे खो दूं जो कृष्णा ने हर इंसान के स्पर्श ,अक्स और आत्मा में संजो रखा ,स्पर्श की पवित्रता कैसे खो दूं।
         आज मैंने इसलिए लिखा है कि मैं अपनी बात तो रख सकूँ क्योंकि मैं अपने अंदर ही बातों को ,सोच को रख कर उस वक्त का इंतजार नहीं कर सकती जब मैं आत्मनिर्भर होऊंगी तब करूँगी ,बोलूंगी ,क्योंकि जीवन रहा तो अपने कर्तव्य को पूरा करने की जिम्मेदारी मैं स्वयं लेती हूं.....
       मुझे इस बात का इंतजार नहीं करना है कि कोई हो जिसे बताऊ सबसे पहले खुद तो बताऊ क्या बात है,लिखना मेरे सुकून का जरिया है यह पानी की तरह मुझे धीरे -धीरे शांत करता है!
          आगे भी फ़लसफ़ा जारी रहेगा!

मेरे विचार मेरे स्वयं के किसी भी प्रकार से कॉपी करने पर कॉपी राइट क़ानून के तहत कार्यवाही हो सकती है ,कृपया ध्यान रखें।महिमा सिंह©



Monday, November 14, 2022

रिक्तता

रिक्तता

मैंने अपने जीवन में महसूस किया है कि हम जैसे -जैसे बड़े होते है खुद को एक दायरे में बांधते चले जाते है मेरा दायरा कहने का तात्पर्य है कि खुद को किसी एक ही भावना,एक ही व्यक्ति,एक ही काम व अन्य में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते है और फिर अमूक काम,भाव ,व्यक्ति से हम दूर होते है या असफ़ल होते है तो हम पूरी तरह खुद को रिक्तता /खालीपन से घिरा हुआ पाते है।
         मैं जिंदगी को जीने में ज्यादा यक़ीन करती हूं खुद को सीमित करने के बजाय ,मुझे याद मैंने कहीं स्वामी विवेकानंद जी की एक लाइन पढ़ी थी कि "जिस वक्त आप जो कर रहे है उस वक्त आपका मन,आत्मा ,दिमाग पूरी तरह उस समय में होना चाहिए ।"चाहे वह काम हो,पढ़ाई हो,सृजनात्मक काम हो,खेल हो या अन्य।
हम एक दिन में बहुत से काम करते है कुछ एक -दो परिस्थितियों को छोड़ देते है तो हम लगभग काम पूरे मनोयोग से कर सकते है।
           मैंने जब भी खुद को एक केंद्रित काम,भाव व अन्य के लिए सर्वस्व छोड़ा है मैंने सफलता या असफलता के बाद अपने अंदर रिक्तता को पाया है और जब जब मैंने अपने आप को प्रकृति,मानवता, स्वास्थ्य,व्यवसाय , भाव व अन्य को एक साथ अलग -अलग जीया और महसूस किया है मैंने स्वयं को भरा हुआ पाया है।
             हम प्रेम की तलाश को केवल जब एक व्यक्ति के रूप में देखते है तो हम रिक्तता को अवश्य महसूस करेंगे ,प्रेम तो खुद का ख्याल रखने से लेकर  प्रकृति से प्रेम, विकास, स्नेह ,लोगों की मदद उनकी मुस्कुराहट ,दोस्तों की हँसी, अध्यात्म  सब कुछ में प्रेम ही है बस महससू करना है,अपनी रिक्तता का जिम्मेदार आप खुद होते है क्योंकि आप अपनी खुशियां केवल केंद्रित भाव से देखते है किसी एक लक्ष्य, एक व्यक्ति ,एक काम व अन्य  की पूर्णता में।
              अपने आप को खुद से जोड़े सबसे पहले फिर प्रकृति ,काम ,अभ्यास ,अध्यात्म फिर इन सब को साथ लेते हुए किसी से समर्पण रखेंगे तो कभी भी रिक्तता महसूस नहीं करेंगे क्योंकि तब सारे भावों का सम्मिश्रण आपको फिर से भर देगा । यह अनुभव है जीवन के एक पहलू का।

आखिर क्यों

    In this modern era,my emotional part is like old school girl... My professionalism is like .. fearless behavior,boldness and decisions ...