Thursday, October 1, 2020

स्वच्छता की यथार्थता


                "स्वच्छता की यथार्थता"

हमसे प्रकृति नही है प्रकृति है तो हम है ,हमारा अस्तित्व है ,लेकिन वर्तमान समय में लगातार प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा,लगातार वृक्षों की कटाई हो रही ,नदियां गंदी हो रही है ,भूमिगत जल स्तर में लगातार गिरावट हो रही है,साँस सम्बंधित बीमारियां बढ़ रही है,उत्पादन में बढ़ोत्तरी बहुत हुई है लेकिन लगातार उर्वरकों, कीटनाशकों के प्रयोग से कई बीमारियों की उत्पत्ति हो रही है,मोटरवाहनों के अत्यधिक प्रयोगों से ध्वनियों सम्बंधित समस्याओं का उदय हो रहा है,सब मानवीय कारणों से ही है ।
               देश मे स्वच्छता सम्बन्धित कई योजनाएं चल रही है स्वच्छ भारत मिशन,नमामि गंगे ,पालीथीन मुक्त भारत  आलम यह है कि आज हम बगल में अभियान का संचालन कर रहे है और वही पानी के बोतलों, पान खाकर थूकना,पैक्ड नाश्ता के पालीथीन को वही फेक दे रहे है। रेलवे स्टेशनों पर बोतलों के प्रबन्ध की व्यवस्था है लेकिन शायद वह भी सिर्फ दिखावे के लिए ही रह गया है,पानी के पाउच वाले पालीथीन  हम कही भी फेक देते है क्योंकि हमें थोड़े ही उस स्थान पर रहना है ,लेकिन लोगो को यह बात क्यों समझ मे नही आती है हवाओं में फैली इन गंदगी को किसी सीमा,चेकपोस्ट या देश में बांध कर नही रखा जा सकता है ।
         नदियों को हम भारतीय माता मानते है लेकिन बड़े -बड़े फैक्ट्री ,महानगरों, शहरों,में वहाँ की पूरी गन्दगी को नदियों में ही गिराते है ,जिसमें न जाने कितने  हानिकारक केमिकल नदियों से सागरों तक मिल जाते है जिससे लगातार हमारे जलीय पारितंत्र ,जीवों की विविधता को कम कर दिया है ,न जाने कितने जलीय जीव खत्म होते जा रहे है ,उन्ही केमिकल युक्त जल ,गन्दगी का सेवन जलीय जीव भी करते है जिससे मांसाहारी मनुष्यों में भी अनगिनत बीमारियों में इजाफा हो रहा है । जल का इतना बड़ा भंडार होते हुए भी आज हम पीने के पानी को खरीद कर पी रहे है लेकिन फिर भी लगातार नदियों ,तालाबों, सागरों में गंदगी लगातार बढ़ रही है ,भूमिगत जल स्तर गिरता जा रहा है
                 वृक्षों की कटाई जितनी तेजी से की जा रही है वृक्षारोपण उतना ही कम है ,हम यहाँ कार्यालयी रिपोर्ट की नही यथार्थ की बात कर रहे है वृक्षारोपण किया जा रहा है लेकिन वह भी सिर्फ दिखावा रह गया है आधारभूत स्तर पर देखा जाय तो इसे चाहे पेशेवर व्यक्ति हो या अधिकारी वर्ग एक काम समझकर उस वक्त पूरा करता है वृक्ष लगा या नही इससे कोई ताल्लुकात नही है ।
        आज हम अपने घर के कूड़ो को निकाल कर घर साफ कर ले रहे है लेकिन वही कूड़ा घर के बगल में फेंक दी रहे है क्या उस कूड़े से मिश्रित हवाओं को ,हानिकारक गैसों को हम अपने घर मे आने से रोक सकते है । कूड़ा घर में हो तो जिम्मेदारी आपकी लेकिन आपके बगल में आपने फेक दिया तो जिम्मेदारी नगरपालिका की ,सरकार की है ।हम अपने स्वास्थ्य ,पर्यावरण के लिए सबसे पहले स्वंय जिम्मेदार है।
                         पालीथीन मुक्त भारत योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया लेकिन कुछ वक्त तक ही जबकि आज जो मानक रखे गए थे पॉलीथिन के लिए आज उसका कोई महत्व नही है सब कुछ खत्म क्या प्रकृति की रक्षा और स्वच्छता के दायित्वों का निर्वहन केवल बड़े -बड़े समारोहों,सोशलमीडिया के चंद पोस्ट तक ही सीमित है क्या यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा नही है । क्या हम सांसे लेना या भोजन कुछ भी छोड़ते है नही लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाले गन्दगी को हम मानते है कि हमे बाहर थोड़े ही रहना है हमे तो अपने घर में रहना है जब तक कि यह धारणा बनी रहेगी लगातार पर्यावरणीय असन्तुलन बना रहेगा ।
                     अगर एक स्वच्छ वातावरण में जीना है तो व्यक्तिगत, सामाजिक, औद्योगिक अन्य स्तर पर अपने मौलिक कर्तव्यों का निर्वहन और प्रकृति के लिए अपने समर्पण के साथ हमें स्वच्छता हेतु जागरूक होना होगा ।


महिमा सिंह (यथार्थ अभिव्यक्ति)

your site:
<script data-ad-client="pub-7874187859256575" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/
pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

             

        
        
        

आखिर क्यों

    In this modern era,my emotional part is like old school girl... My professionalism is like .. fearless behavior,boldness and decisions ...