In this modern era,my emotional part is like old school girl...
My professionalism is like .. fearless behavior,boldness and decisions as like upcoming generation...
मैं अंगो से नहीं, अंग मुझमें निर्मित है,
भाव से मैं नहीं, भवनाओं से मैं हूं,
हर भाव गहनता से मुझमें, तुम क्या पाओगें,
केवल तुम्हारा व्यवहार ही निर्धारित करेगा,
स्त्री या पुरुष कुछ भी नहीं, हम बस किरदार है,
हर कहीं, हर जगह,हर वक्त !
मैं एक लड़की की आजादी की बात नहीं करूंगी अभी,
मुझे बस आज यह बोलना है कि!
क्यों जब मैंने बोला तो मुझे मुँहफट बोला गया
जब मैं नहीं बोल पायी तो दब्बू,बददिमाग,शर्मीली,मर्यादित
व अन्य बोला गया!
क्यों मुझे बोलना पड़ता है अकेले रहना चाहती हूं!
क्यों मैं नहीं बोल पाती कि मुझे इस वक्त तुमसे बात करनी है,
अकेला और खाली महसूस कर रही हूं , जब कोशिश की तब
भी तुम्हारा न समझना ,मेरी हिम्मत तोड़ देता है!
क्यों मैं नहीं बोल पाती हूं मुझे भी काम है,मैं व्यस्त हूं,क्यों मैं यों अचानक
गायब नहीं हो पाती ,शांत नहीं हो पाती,
क्यों हर बार मुझे तुम्हारे काम और व्यस्तताएं याद आ जाती है ,क्यों
मुझे ही तुम प्राथमिक लगते हो !
क्यों हर बार मैं ही इंतजार करती हूं,तुम्हारे आने, आकर बात करने,बेचैन रह रात काटते रहने का,क्यों मुझे ही समझ आते है तुम्हारे समाज ,काम ,व्यस्तताएं और थकावट !
क्यों हर बार मैं ही गम्भीरता, बेचैनी,दर्द,तकलीफ,प्रतीक्षा,धैर्य और
खालीपन महसूस करती हूं ,क्यों मेरा दिमाग हावी नहीं हो पाता मेरे दिल पर !
क्यों मैं ही नहीं कर पाती हूं अपने काम जब -तक मेरे भावनात्मक पहलू खुश न हो,
क्यों अब मैं जब खुल के कह लेती हूं जरूरत है तुम्हारी,अकेलापन महसूस होता है,फिर भी तुम नहीं आते क्यों!
जबकि अब तो मैंने हिम्मत कर इससे मुक्ति दे दी कि तुम समझो मुझे,
मेरी आँखें पढ़ो ,अब तो कह देती हूं हां, गुस्सा आ रहा ,खालीपन लग रहा,
बस बैठे रहो, बातें सुनो ,कुछ न करो बस रहो ,तब भी तुम नहीं होते होते ,
सदियों से बसें इस डर से मैंने लड़ना चाहा लेकिन आज भी यह वहीं है !
तब लगता है मुझे कि स्त्री होना कितना दुःखदायी है ,
न बोलो तो तुम कुछ कहती नहीं, समझ लोगे शायद,
प्यार की बातें और इजहार स्त्री कर दे तो बेक़द्र होती है,
यदि आसानी से उपलब्ध हो जाए तो बेक़द्र होती ही है!
प्राथमिक केवल तुम ही क्यों, क्योंकि तुम्हें आर्थिक नियोजन
करना है!
समझती हूं मैं कि एक पुरुष को सर्वप्रथम उसकी आर्थिकी से ही ,
समाज ने जाना है,इसलिए हमनें स्वयं अपने सर्वस्व गृहस्थ कामों को नीचा मान,
तुम्हें उठाया है ,क्या तुम्हारा फर्ज नहीं था कि समाज में अपनी कद्र की वजह से
हमें अपने घर में, परिवार में वही कद्र दो और समाज से दिलवाओ, पर
तुमने नहीं किया,इसलिए हमें स्वंय करना पड़ रहा!
स्त्री का मौन हो जाना ही शायद उसकी कद्र बढ़ा सकता है,
लेकिन यह हमारे समाज में प्रेम की त्रासदी है कि धीरे-धीरे ,
बहुत ज्यादा कद्र करने वाले एक दिन मजबूर होकर ,बस
पत्थर ,खामोश और मुर्दा जीवित शरीर में सफ़ल स्त्री मिलेंगी ,
या अपने पिता ,भाई ,सिर्फ अपने घर और अपनी सबसे बड़ी ताकत बनेंगी !
Mahima Singh ©
महिमा यथार्थ अभिव्यक्ति
ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य है कि लोग जाने की समाज में दरअसल किस तरह की मान्यता है ,क्या गलत हो रहा है ,हम इसके लिए क्या कर सकते है ,हम किस तरह व्यक्तिगत जीवन में परिवर्तन कर समाज में अपनी कुछ सहायता कर सकते है ,क्योंकि बदलाव हमेशा एक व्यक्ति के सोच से आरम्भ होता है और परिवर्तन में लोगो की सहायता और सहयोग से बड़े परिवर्तन किए जा सकते है ,हमनें सहयोग से आजादी ,अधिकार, स्वतंत्रता पायी है लेकिन अब इसको व्यक्तिगत स्तर से समाज में पाना अभी बाकी है अतः एक व्यक्ति का सहयोग भी बड़े परिवर्तन की ओर पहला कदम है।
Tuesday, December 26, 2023
Thursday, December 14, 2023
सिर्फ उम्र को वरीयता देना नहीं जरूरी........!
हमें हमेशा बड़ो की इज्जत करना सिखाया जाता है ,जो कि सही भी है और यह अपना -अपना व्यक्तिगत व्यवहार भी है ,लेकिन यह कभी नहीं बताया जाता है कि बड़े लोगों के सभी व्यवहार, सभी काम,उनके अनुभव ,उनके विचार हमेशा सही ही हो यह जरूरी नहीं है ,इसलिए हमेशा आँख मूंद कर हर बात नहीं मानी जानी चाहिए ,न ही अपने को इस बात से परखना चाहिए कि मैं छोटा हूं तो सामने वाला हर बात सही ही कह रहा है ,इसमें सिर्फ आपकी गलती है ,बेवकूफ़ी है और नादानी है कि आप खुद को कम समझो या पूरी तरह प्रभावित हो किसी से ।
जबकि बच्चों के साथ बुरा कभी बच्चें नहीं करते है ,अगवा कर लेना,बलात्कार करना, फुसला लेना ,बुरा या अच्छा स्पर्श ...हम अभिवावक बताते है कि ये सही होता है यह गलत होता है लेकिन एक वक्त के बाद मैंने यही पाया है कि हम नहीं बताते कि समाज कैसा है ,कैसे वह दिग्भ्रमित करता है,कैसे आपको बातों से,व्यवहार से छलता है यह सब 95% युवा अपने ही अनुभवों से सीख रहे है जबकि यह बहुत ही आवश्यक है बताना और इतना स्वभाविक माहौल और व्यवहार घर,परिवार,माँ-बाप का होना चाहिए कि हर बच्चा आ कर बता सके या आप बता सको ,समझा सको कि कितने पैतरे आजमाए जाते है किसी से काम निकलवाने के लिए ,बच्चों को जब तक एहसास होता है कि उनकी कट गई है या उनका उपयोग किया गया है तब तक वे अपना आत्मविश्वास, अपना अस्तित्व, अपनी इच्छाशक्ति खत्म कर चुके होते है ,बहुत कम ही होते है जो पहचानते है कि उनका अपना अस्तित्व ख़तरे में है और उन्हें बहुत जरूरत है कि वह सिर्फ अपने आप के लिए खड़े हो और बेख़ौक निर्णय ले सके।
हां, जानती हूं कई लोगों को लगेगा कि कोई इतना बेवकूफ नहीं होता लेकिन सच्चाई यही है कि ज़्यादातर बच्चों को सिर्फ अच्छा ही सिखाया गया है कभी बताया ही नहीं गया कि व्यक्ति का वस्तुकरण शुरू हो चुका है और इसके अनगिनत पहलू है इसलिए उम्र और लैंगिक वरीयता जो समाज ने दिया है उससे ऊपर अपने विवेक और व्यवहारिक पहलू पर काम किया जाना चाहिए और परिवार द्वारा बताया जाना चाहिए । जब -जब आप अपनी महत्ता कम करके बार-बार किसी को महत्वपूर्ण और उपलब्ध बनाते हो तो आप बेमोल और बेक़द्र होते हो और यही एहसास आपको आंतरिक रूप से कमज़ोर और आत्मविश्वास विहीन कर देगा ,यह वाकई ऐसा ही है जैसे जीते हुए भी मरे हुए हो जाना ।
स्वयं को चुनना ,अपने अस्तित्व को चुनना ,अपनी प्राथमिकता को चुनना कभी स्वार्थ नहीं होता है।महिमा यथार्थ©
जबकि बच्चों के साथ बुरा कभी बच्चें नहीं करते है ,अगवा कर लेना,बलात्कार करना, फुसला लेना ,बुरा या अच्छा स्पर्श ...हम अभिवावक बताते है कि ये सही होता है यह गलत होता है लेकिन एक वक्त के बाद मैंने यही पाया है कि हम नहीं बताते कि समाज कैसा है ,कैसे वह दिग्भ्रमित करता है,कैसे आपको बातों से,व्यवहार से छलता है यह सब 95% युवा अपने ही अनुभवों से सीख रहे है जबकि यह बहुत ही आवश्यक है बताना और इतना स्वभाविक माहौल और व्यवहार घर,परिवार,माँ-बाप का होना चाहिए कि हर बच्चा आ कर बता सके या आप बता सको ,समझा सको कि कितने पैतरे आजमाए जाते है किसी से काम निकलवाने के लिए ,बच्चों को जब तक एहसास होता है कि उनकी कट गई है या उनका उपयोग किया गया है तब तक वे अपना आत्मविश्वास, अपना अस्तित्व, अपनी इच्छाशक्ति खत्म कर चुके होते है ,बहुत कम ही होते है जो पहचानते है कि उनका अपना अस्तित्व ख़तरे में है और उन्हें बहुत जरूरत है कि वह सिर्फ अपने आप के लिए खड़े हो और बेख़ौक निर्णय ले सके।
हां, जानती हूं कई लोगों को लगेगा कि कोई इतना बेवकूफ नहीं होता लेकिन सच्चाई यही है कि ज़्यादातर बच्चों को सिर्फ अच्छा ही सिखाया गया है कभी बताया ही नहीं गया कि व्यक्ति का वस्तुकरण शुरू हो चुका है और इसके अनगिनत पहलू है इसलिए उम्र और लैंगिक वरीयता जो समाज ने दिया है उससे ऊपर अपने विवेक और व्यवहारिक पहलू पर काम किया जाना चाहिए और परिवार द्वारा बताया जाना चाहिए । जब -जब आप अपनी महत्ता कम करके बार-बार किसी को महत्वपूर्ण और उपलब्ध बनाते हो तो आप बेमोल और बेक़द्र होते हो और यही एहसास आपको आंतरिक रूप से कमज़ोर और आत्मविश्वास विहीन कर देगा ,यह वाकई ऐसा ही है जैसे जीते हुए भी मरे हुए हो जाना ।
स्वयं को चुनना ,अपने अस्तित्व को चुनना ,अपनी प्राथमिकता को चुनना कभी स्वार्थ नहीं होता है।महिमा यथार्थ©
Friday, July 28, 2023
तथाकथित समाज
मैंने जानबूझकर वक्त दिया खुद को ,ताकि मैं जान सकूँ कि क्या चाहते है लोग ,समाज ,परिवार,दोस्त ....अन्ततः पाया यही है कि आप अगर पूछे जाते हो,प्यार किए जाते हो,सम्मानित किए जाते हो,गलतियां आपकी भुला दी जाती है जो कि यह भी समाज ही निर्धारित करता है कि क्या सही है क्या गलत.... तो बस आपकी आर्थिकी का जरिया क्या है इससे,आप की आय कितनी है...सम्पत्ति कितनी है...खाशकर लड़को के लिए तो यह और दुबिधा से भरा है ,यह उन्हें समाज में खड़े होने के लिए अतिआवश्यक है...
यह सारी चीजों में लड़कियों का यह पक्ष इसलिए आता है कि एक तो वह खुद चाहती हो यह मुकाम पाना, अपना कुछ अपने बल बूते करना, बहुतायत यह समाज में एक वजूद बनाने के लिए करती है ताकि उन्हें मजबूरन दब कर,मजबूरन ,रिश्ते को ढोना न पड़े वह जी सके एक सामान्य जीवन अपने आस -पास समाज में ,हमसफ़र के साथ ,जिम्मेदारी की तरह उन्हें न समझा जाए इसलिए करती है ....
नहीं तो शादी तो हो ही जाती है लड़कियों की दहेज देकर,सुंदरता देख कर,घरेलू गुण देखकर ,रसोई घर की कारीगरी देखकर,नौकरी देखकर....
आपका दिल, आपका नजरिया ,आपका ज्ञान,आपकी काबिलियत, आपकी नियत,आपका चरित्र, आपका स्वभाव कितना ही बेहतरीन क्यों न हो ,
यह सब बाद की बातें है ...जब बात रिश्ते बनाने को होते है ......
लेकिन अगर सिर्फ बात करनी हो,किसी को प्रभावित करनी हो,किसी से किसी भी तरह की स्वार्थसिद्धि करनी हो तो यह सब प्रथम बन जाता है हमारे समाज ,परिवार व अन्य के लिए...
यहीं दोगलापन है समाज का ....
इसलिए आप को सब कुछ समन्वय करके चलना पड़ता है ....
समाज का डर दिखाया भी जाता है ,समाज ही आपके लिए गड्ढे भी बनाता है ,दरिया भी बनाता है,परतंत्रता भी देता है ....आजादी तो बस कागजों में है ..यदि चाहिए तो लड़ो कानून से ,समाज से तब आप विरोधी और विद्रोही भी हो जाएंगे....
बधाई हो आप तथाकथित समाज के दोगलेपन का शिकार है...
आप बस स्वयं से मुक्ति ले सकते है ,अतः आनन्द में रहिए ...कोई आप को छोड़ने वाला नहीं है .....
यह सारी चीजों में लड़कियों का यह पक्ष इसलिए आता है कि एक तो वह खुद चाहती हो यह मुकाम पाना, अपना कुछ अपने बल बूते करना, बहुतायत यह समाज में एक वजूद बनाने के लिए करती है ताकि उन्हें मजबूरन दब कर,मजबूरन ,रिश्ते को ढोना न पड़े वह जी सके एक सामान्य जीवन अपने आस -पास समाज में ,हमसफ़र के साथ ,जिम्मेदारी की तरह उन्हें न समझा जाए इसलिए करती है ....
नहीं तो शादी तो हो ही जाती है लड़कियों की दहेज देकर,सुंदरता देख कर,घरेलू गुण देखकर ,रसोई घर की कारीगरी देखकर,नौकरी देखकर....
आपका दिल, आपका नजरिया ,आपका ज्ञान,आपकी काबिलियत, आपकी नियत,आपका चरित्र, आपका स्वभाव कितना ही बेहतरीन क्यों न हो ,
यह सब बाद की बातें है ...जब बात रिश्ते बनाने को होते है ......
लेकिन अगर सिर्फ बात करनी हो,किसी को प्रभावित करनी हो,किसी से किसी भी तरह की स्वार्थसिद्धि करनी हो तो यह सब प्रथम बन जाता है हमारे समाज ,परिवार व अन्य के लिए...
यहीं दोगलापन है समाज का ....
इसलिए आप को सब कुछ समन्वय करके चलना पड़ता है ....
समाज का डर दिखाया भी जाता है ,समाज ही आपके लिए गड्ढे भी बनाता है ,दरिया भी बनाता है,परतंत्रता भी देता है ....आजादी तो बस कागजों में है ..यदि चाहिए तो लड़ो कानून से ,समाज से तब आप विरोधी और विद्रोही भी हो जाएंगे....
बधाई हो आप तथाकथित समाज के दोगलेपन का शिकार है...
आप बस स्वयं से मुक्ति ले सकते है ,अतः आनन्द में रहिए ...कोई आप को छोड़ने वाला नहीं है .....
Thursday, June 22, 2023
"हमसफ़र"
सभी स्त्रियां नहीं ढूंढती है,
सुंदरता,धन -दौलत,पद, प्रतिष्ठा ,
मर्द ,प्रेमी ,पति !
कुछ ढूंढती है एक मात्र दोस्त,
उसके जीवन का बेहतरीन मर्द,
जिसमें वह देखती है ,
पिता की परछाई ,उनका सानिध्य
भाई का प्यार ,उसकी नोक -झोंक
माँ सा प्यार , भाई-बहन सा साथ !
एक व्यक्ति जो बस जब साथ हो ,
वह आंगन छोड़ चुकी सारा बाबुल
ढूंढती है उसमें बस,
जो परखता न हो उसे ,वह समझ
पाए उसे समाज के रूढियों से परे !
मर्द और औरत की भिन्नता से परे,
वह उसे समझे अपना हमसफ़र !
वैसा ही जैसा कि कुछ पुरुष ,
केवल नहीं चाहते एक सुंदर स्त्री
वह चाहते है माँ सा प्यार,
पिता सा संबल ,खामोश सा प्यार
बहन जैसी सहायक ,
दोस्तों जैसा कोई व्यक्ति,
जो उन्हें परखता न हो,
उनकी नादानियों में साथ देता हो ,
एक - दूसरे का राज रख सके ,
खुल कर हँस सकता हो ,
चर्चा कर सकता हो ,
सुन सकता हो ,
समझ सकता हो ......
महिमा यथार्थ©
सुंदरता,धन -दौलत,पद, प्रतिष्ठा ,
मर्द ,प्रेमी ,पति !
कुछ ढूंढती है एक मात्र दोस्त,
उसके जीवन का बेहतरीन मर्द,
जिसमें वह देखती है ,
पिता की परछाई ,उनका सानिध्य
भाई का प्यार ,उसकी नोक -झोंक
माँ सा प्यार , भाई-बहन सा साथ !
एक व्यक्ति जो बस जब साथ हो ,
वह आंगन छोड़ चुकी सारा बाबुल
ढूंढती है उसमें बस,
जो परखता न हो उसे ,वह समझ
पाए उसे समाज के रूढियों से परे !
मर्द और औरत की भिन्नता से परे,
वह उसे समझे अपना हमसफ़र !
वैसा ही जैसा कि कुछ पुरुष ,
केवल नहीं चाहते एक सुंदर स्त्री
वह चाहते है माँ सा प्यार,
पिता सा संबल ,खामोश सा प्यार
बहन जैसी सहायक ,
दोस्तों जैसा कोई व्यक्ति,
जो उन्हें परखता न हो,
उनकी नादानियों में साथ देता हो ,
एक - दूसरे का राज रख सके ,
खुल कर हँस सकता हो ,
चर्चा कर सकता हो ,
सुन सकता हो ,
समझ सकता हो ......
महिमा यथार्थ©
Sunday, June 11, 2023
धैर्य धारण करना लेकिन,
कह कर इसे जताना क्यों,
धारण है तो आवश्यकता क्या,
प्रमाणिकता देना,
धैर्य करो धारण तुम ,केवल
खुद को मानसिक शांति के लिए ,
जो होना है जब होना है होकर ही रहना है,
कर्म प्रधान है इस जीवन का,
करो और फिर रहो मस्त!
क्षमाशील बनो लेकिन,
खुद को दोबारा धक्का देना क्यों,
क्षमा करो या माँगो लेकिन,केवल
खुद की शांति के लिए,
कह कर या कर के इसे जताना क्या ,
मत दौड़ो तुम महानता के दौड़ में,
हर किसी को समझ आओ,
हर किसी के लिए सही ही रहो,
जरूरी तो नहीं!
हर बात की पुष्टि देना,
हर बात की व्याख्या करना,
दिखाता है बस तुम्हारा ही कुछ छिपाना,
मत करो तुम किसी की पुष्टि,
जो जैसा है रहने दो,
जो जैसा है बोलो तुम,
खुद को अपनी नजरों में बस
कभी न तुम गिरने देना!
महिमा यथार्थ©
कह कर इसे जताना क्यों,
धारण है तो आवश्यकता क्या,
प्रमाणिकता देना,
धैर्य करो धारण तुम ,केवल
खुद को मानसिक शांति के लिए ,
जो होना है जब होना है होकर ही रहना है,
कर्म प्रधान है इस जीवन का,
करो और फिर रहो मस्त!
क्षमाशील बनो लेकिन,
खुद को दोबारा धक्का देना क्यों,
क्षमा करो या माँगो लेकिन,केवल
खुद की शांति के लिए,
कह कर या कर के इसे जताना क्या ,
मत दौड़ो तुम महानता के दौड़ में,
हर किसी को समझ आओ,
हर किसी के लिए सही ही रहो,
जरूरी तो नहीं!
हर बात की पुष्टि देना,
हर बात की व्याख्या करना,
दिखाता है बस तुम्हारा ही कुछ छिपाना,
मत करो तुम किसी की पुष्टि,
जो जैसा है रहने दो,
जो जैसा है बोलो तुम,
खुद को अपनी नजरों में बस
कभी न तुम गिरने देना!
महिमा यथार्थ©
Friday, May 26, 2023
क्यों नहीं
चलो आज कुछ बात कर ले,
मेरे हिस्से में इंतजार क्यों है,
मेरे हिस्से में प्राथमिकता क्यों है,
मेरे हिस्से में पहल क्यों है,
मेरी हिस्से में समझदारी क्यों है,
मेरे हिस्से में नाराजगी भी तुमसे ही
मेरे हिस्से में बातों का ज़रिया भी तू है,
मेरे किस्से के हर हिस्से में तू है,
क्यों है तुम पर जिम्मेदारी और मर्यादा का दायित्व,
क्यों नही है अधिकार तुम्हें अपने जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से को चुनने का,
क्यों तुम्हारा चुनाव हमेशा ग़लत ही लगता है,
क्यों नहीं दिया जाना चाहिए एक मौका तुम्हारे चुनाव को,
क्यों प्राथमिकता दे दी जाती है समाज को बजाय तुम्हारे,
ऐसा बोलती रहूं तो बस यह मेरा हिस्सा ही है !
क्यों है तुम्हारे हिस्से में जिम्मेदारी सा एहसास,
क्यों है तुम्हारे हिस्से में लोगों के साथ मेरी प्राथमिकता,
क्यों है तुम्हारे हिस्से में मेरे सम्मान की प्राथमिकता,
क्यों है तुम्हारे हिस्से हर बात की जिम्मेदारी रखना
और अपने को बस कठोर बनाए रखना,
क्यों है तुम्हारे हिस्से जिम्मेदारी के बदले नाराजगी और रूखा सा व्यवहार,
क्यों है सिर्फ तुझ पर सारे समाज की कहीं अनकही जिम्मेदारी का बोझ,
क्यों ढाला गया है तुझे कठोर साँचे में,
नहीं हो तुम कठोर,
क्यों नही स्वीकार की जाती है तुम्हारे चुनाव को उसी अधिकार से जैसे कोई और चुना जाता है उनके द्वारा,
क्यों नहीं समझने की कोशिश की जाती है,
तुम हो पात्र बस प्यार,सम्मान और कद्र के
अगर तुम सच में ऐसे हो!
क्यों नही समझने ,स्वीकारने ,मौका देने की कोशिश की जाती है?यथार्थ!
मेरे हिस्से में इंतजार क्यों है,
मेरे हिस्से में प्राथमिकता क्यों है,
मेरे हिस्से में पहल क्यों है,
मेरी हिस्से में समझदारी क्यों है,
मेरे हिस्से में नाराजगी भी तुमसे ही
मेरे हिस्से में बातों का ज़रिया भी तू है,
मेरे किस्से के हर हिस्से में तू है,
क्यों है तुम पर जिम्मेदारी और मर्यादा का दायित्व,
क्यों नही है अधिकार तुम्हें अपने जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से को चुनने का,
क्यों तुम्हारा चुनाव हमेशा ग़लत ही लगता है,
क्यों नहीं दिया जाना चाहिए एक मौका तुम्हारे चुनाव को,
क्यों प्राथमिकता दे दी जाती है समाज को बजाय तुम्हारे,
ऐसा बोलती रहूं तो बस यह मेरा हिस्सा ही है !
क्यों है तुम्हारे हिस्से में जिम्मेदारी सा एहसास,
क्यों है तुम्हारे हिस्से में लोगों के साथ मेरी प्राथमिकता,
क्यों है तुम्हारे हिस्से में मेरे सम्मान की प्राथमिकता,
क्यों है तुम्हारे हिस्से हर बात की जिम्मेदारी रखना
और अपने को बस कठोर बनाए रखना,
क्यों है तुम्हारे हिस्से जिम्मेदारी के बदले नाराजगी और रूखा सा व्यवहार,
क्यों है सिर्फ तुझ पर सारे समाज की कहीं अनकही जिम्मेदारी का बोझ,
क्यों ढाला गया है तुझे कठोर साँचे में,
नहीं हो तुम कठोर,
क्यों नही स्वीकार की जाती है तुम्हारे चुनाव को उसी अधिकार से जैसे कोई और चुना जाता है उनके द्वारा,
क्यों नहीं समझने की कोशिश की जाती है,
तुम हो पात्र बस प्यार,सम्मान और कद्र के
अगर तुम सच में ऐसे हो!
क्यों नही समझने ,स्वीकारने ,मौका देने की कोशिश की जाती है?यथार्थ!
Monday, March 27, 2023
प्रतीक्षा
कुछ वाक़या जीवन को सीख देने के साथ बहुत आहत कर जाती है,पता नहीं क्यों लेकिन भावों को समझने और उसकी गहराई बहुत ही स्तब्ध कर जाती है।
एकाकीपन हमें लगता है युवाओं में अत्यधिक है लेकिन इससे कहीं ज्यादा मैंने पाया कि एकाकीपन वृद्ध जनों में बहुत ज्यादा है,जो बिल्कुल अनकहा, अनसमझा है हम एक वक्त के बाद भूल जाते है कि हमारे माता-पिता को हमारी सबसे ज्यादा जरूरत तब सबसे ज्यादा होती है जब हम अपने जिंदगी के अहम हिस्से में जी रहे होते है जब हमें लगता है कि सब कुछ यही है ऐसा ही रहेगा यही हमारी दुनियां है हम उस दुनियां में उनको भूल चुके होते है,शहरों की सुविधाएं, विकास लुभावनी तो लगती है लेकिन यहाँ पड़ोस में भी खबर नहीं होती कौन है कौन नही,कई मकानों में माँ अकेले रह रही,पिता अकेले रह रहे,कहीं दोनों अकेले रह रहे,हम उन्हें सहायकों के भरोसे छोड़,दूसरे देशों में रह रहे है,बयां नहीं कर सकती हूं मैं कि यह किस हद तक का एकाकीपन बढ़ रहा समाज में ,जो लगातार डिप्रेशन, हार्ट अटैक ,मानसिक पीड़ा दे रहा है ।
जानती हूं कि यही सवाल आएगा कि क्या किया जा सकता है जीवन को चलाने के लिए,आर्थिक अर्जन के लिए करना पड़ेगा न ,धीरे-धीरे समझ आ रहा है मुझे कि हम इतने अर्जन के बाद भी खाली ही जाते है सब को पता है लेकिन वही है न अपनी पीड़ा हमें अपनी लगती है किसी और की पीड़ा जब तक समझ आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.....
शब्द नहीं है मेरे पास,
उन भावों की अभिव्यक्ति करूँ,
जीवन चक्र के उन भावों का,
कैसे करूँ मैं अभिव्यक्ति!
नित जीवन के उन क्षण का,
जो देता पीर,अनकहे भावों में,
विरह वेदना के उन भावों का,
जो मन के अन्तस् को भर जाता!
जीवन का सम्पूर्ण त्याग,
जब खत्म हो एकाकीपन में,
सब धरे रह गया इसी धरा पर!
नहीं है कोई शब्द धरा में,
जो व्यक्त करें उन भावों को,
क्षुब्ध हो गया है मन मेरा!
हम दूर हो गए इतना अपनों से,
कर पाएं न जब अंतिम दर्शन,
जीवन दाता हो जो अपने!
कलेजा छलनी तो हुआ होगा,
प्रश्न तुम्हें भी घेरे होंगे,
इतनी दूर निकल आए क्यों!
जीवन के अंतिम क्षण तक,
ललचाई सी आँखों में,
एक प्रतीक्षा देखी है!
महिमा यथार्थ©
एकाकीपन हमें लगता है युवाओं में अत्यधिक है लेकिन इससे कहीं ज्यादा मैंने पाया कि एकाकीपन वृद्ध जनों में बहुत ज्यादा है,जो बिल्कुल अनकहा, अनसमझा है हम एक वक्त के बाद भूल जाते है कि हमारे माता-पिता को हमारी सबसे ज्यादा जरूरत तब सबसे ज्यादा होती है जब हम अपने जिंदगी के अहम हिस्से में जी रहे होते है जब हमें लगता है कि सब कुछ यही है ऐसा ही रहेगा यही हमारी दुनियां है हम उस दुनियां में उनको भूल चुके होते है,शहरों की सुविधाएं, विकास लुभावनी तो लगती है लेकिन यहाँ पड़ोस में भी खबर नहीं होती कौन है कौन नही,कई मकानों में माँ अकेले रह रही,पिता अकेले रह रहे,कहीं दोनों अकेले रह रहे,हम उन्हें सहायकों के भरोसे छोड़,दूसरे देशों में रह रहे है,बयां नहीं कर सकती हूं मैं कि यह किस हद तक का एकाकीपन बढ़ रहा समाज में ,जो लगातार डिप्रेशन, हार्ट अटैक ,मानसिक पीड़ा दे रहा है ।
जानती हूं कि यही सवाल आएगा कि क्या किया जा सकता है जीवन को चलाने के लिए,आर्थिक अर्जन के लिए करना पड़ेगा न ,धीरे-धीरे समझ आ रहा है मुझे कि हम इतने अर्जन के बाद भी खाली ही जाते है सब को पता है लेकिन वही है न अपनी पीड़ा हमें अपनी लगती है किसी और की पीड़ा जब तक समझ आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.....
शब्द नहीं है मेरे पास,
उन भावों की अभिव्यक्ति करूँ,
जीवन चक्र के उन भावों का,
कैसे करूँ मैं अभिव्यक्ति!
नित जीवन के उन क्षण का,
जो देता पीर,अनकहे भावों में,
विरह वेदना के उन भावों का,
जो मन के अन्तस् को भर जाता!
जीवन का सम्पूर्ण त्याग,
जब खत्म हो एकाकीपन में,
सब धरे रह गया इसी धरा पर!
नहीं है कोई शब्द धरा में,
जो व्यक्त करें उन भावों को,
क्षुब्ध हो गया है मन मेरा!
हम दूर हो गए इतना अपनों से,
कर पाएं न जब अंतिम दर्शन,
जीवन दाता हो जो अपने!
कलेजा छलनी तो हुआ होगा,
प्रश्न तुम्हें भी घेरे होंगे,
इतनी दूर निकल आए क्यों!
जीवन के अंतिम क्षण तक,
ललचाई सी आँखों में,
एक प्रतीक्षा देखी है!
महिमा यथार्थ©
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" स्वच्छता की यथार्थता" हमसे प्रकृति नही है प्रकृति है तो हम है ,हमारा अस्तित्व है ,लेकिन वर्तमान ...
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