है राष्ट्र प्रेम इतना तो भावुकता क्यों एक दिन का,
सम्मान हो हर पल का तुममें चाहे हो कोई भी दिन,
नहीं सिखाया कभी उन्होंने राष्ट्रप्रेम एक दिन का,
कर्म और कर्तव्य जुड़ा हो हर पल इस मिट्टी से,
लहूं से सिंचित इस धरती को हरियाली से भर दो न,
मोल न हो यहां प्राणवायु इतना तो तुम कर दो न,
भूख से पीड़ित कोई मानस न सोए इस मिट्टी पर,
मत करो अपमानित अन्न का है वह भी लहूं किसानों का,
अन्नपूर्णा है माँ हमारी तब क्यों किंचित है किसान ,
है राष्ट्र प्रेम इतना तो भावुकता क्यों एक दिन का ,
बेड़िया आजाद होने का मतलब हो स्वयं सबका अपना निर्णय,
आजादी पले बढ़े बच्चों में हो नए विचार सृजन ,
न हो क्लेश लोगों में इतना बन जाये एकाकीपन,
जाति है सबका स्वाधिकार मानवता में भेद ये है कैसा ,
कतरा-कतरा रक्त की बूंदे चाहती थी आजाद परिंदे ,
फिर क्यों कुंडित पड़े हुए है गली गली में लोग यहाँ,
है राष्ट्र प्रेम इतना तो भावुकता क्यों एक दिन का,
जल है गंगा जिस मिट्टी में फिर क्यों दूषित करते हम,
धरा सनी है रक्त से वह भी मानी जाती माँ ,
आज लदी है पर्वत जैसे कूड़ो से ,
धर्म है शान जिस धरा पर फिर क्यों लुट जाते है लोग,
रक्त आज भी अर्पित होता शहीद यहाँ है हर कोने में,
जान है वह राष्ट्र की अपनी फिर क्यों सम्मान नहीं आँखों में,
है राष्ट्र पर इतना तो भावुकता क्यों एक दिन का ,
राष्ट्रगान है कंपन सा छेड़ जाता है जर्रा -जर्रा ,
अर्पण भी है तर्पण भी है ,आन बान और शान भी है,
देश है तो हम है ,हो नब्ज -नब्ज और पल - पल में,
राष्ट्रप्रेम और कर्तव्य हमारा ,जल ,मिट्टी ,वायु हो शुद्ध ,
ऐसा हो कर्तव्य सभी का ,देशप्रेम हो जर्रे-जर्रे में ,
हो बेड़ियों से आजाद यहाँ हर कोई ,
स्वतंत्र हो विचार सभी के ,
देश है हर पल अपना ,
हम भी हो हर पल उसके ।
जय हिंद ,जय भारत
महिमा यथार्थ ©©
4 comments:
Nice 👍🏻👍🏻👍🏻
Keep it up
Nice 👍🏻👍🏻👍🏻
Nice 👍🏻👍🏻👍🏻
Thanks
Post a Comment