Saturday, September 26, 2020

यथार्थ प्रेम-आज का परिदृश्य



संसार का स्थायित्व इसलिए है क्योंकि प्रेम,भावना,आचरण,मानवता,सेवा ,समर्पण ,संस्कृति का स्थायित्व है केवल इसके रूप बदलते है अन्यथा इस दुनियां सब कुछ अस्थायी है,परिवर्तनशील है ।प्रेम की परिभाषा में नाम लिया जाता है राधा और कृष्ण का 
,कृष्ण और सुदामा का ,शिव जी और माँ आदिशक्ति का,मीरा और कृष्ण का,भक्त और भगवान का,माँ की भावनाओं का ,पिता के प्रेम का ।
      जहां तक कि मनुष्यों की बात की जाए तो जीवन के आरम्भ में तो कभी कोई जाति,वर्ग,लिंग असमानता,स्तर,देश,विदेश,राज्य ,धर्म (हिन्दू,मुसलिम, सिख,ईसाई ,प्रोटेस्टेंट अन्य) , गोरा,काला, अमीर ,गरीब जैसी कोई अवधारणा या अलगाव नही था ।जैसे जैसे हमने विकास करना आरम्भ किया ,एक संस्कृति विकसित होने की प्रकिया का उदघोष हुआ अपनत्व नही अपने की भावना का विकास होने लगा,अपने लिए भोजन,पानी,आवास ,संसाधन इकट्ठा करना ,अपनी उत्तरजीविता को बचाएं रखने की होड़ हुई तभी से स्वार्थ और वर्ग संघर्ष का बीज प्रस्फुटित हुआ और धीरे-धीरे यह दायरा इतना बढ़ता चला गया कि फिर अपना परिवार,अपना वर्ग ,अपनी जाति, अपना धर्म, अपना समुदाय , अपना राष्ट्र, अपना देश स्वअस्तित्व की इतनी गहरी खाई बन गयी कि आज मानवता,धर्म,सेवा ,प्रेम सब बिल्कुल निरीह,निर्जीव और शब्द मात्र बन कर रह गया है ।
     आज वर्तमान समय में सेवा ,दान ,धर्म(कर्म) सब स्वार्थ की कसौटी पर तौली जाती है ,आज सेवा ,दान एक भाव नही दिखावा बन गया है ,किसी को जरा सा भोजन क्या दे दिया फ़ोटो ली और सोशल कर दिया आप सच में दिखाना चाहते है कि आपने किया ,सच्ची भावना को कभी दिखाने की जरूरत होती है क्या ? 
     आज से पहले स्वामी विवेकानंद, विद्याचंद सागर,अब्दुल कलाम ,नेल्सन मंडेला व अन्य लोगों ने जो किया व उनकी सच्ची  भावना थी जो कि उनके व्यक्तित्व में थी आज उसे इसलिए नही पढ़ा जाता कि आप यह विचार करें कि लोग सोचते थे महसूस करते थे कि मानवता के लिए यह किया जाना चाहिए ,मानवता ही सच्ची सेवा है वे कभी भी अपने राष्ट्र ,जाति, धर्म में न बंधकर सम्पूर्ण विश्व को अपना मान कर काम किये ,उनके लिए सम्पूर्ण मानवजाति की सेवा ही धर्म थी,अन्याय ,द्वेष,ईर्ष्या, भेदभाव ,दिखावें से परे उनके लिए सिर्फ मानवता ही सर्वश्रेष्ठ धर्म और कर्म रहा ।
      जाति, वर्ग,लिंग भेद,असमानता, सब अपने आपको सर्वश्रेष्ठ ,उच्च बनाने के लिए किया गया एक स्वार्थपरक विचार है यदि आप सच में मजबूत है तो इस प्रकार के स्वार्थपरक विचारों की आवश्यकता ही क्यों ?
आप श्रेष्ठ खुद को कैसे मान सकते है जबकि आप खुद जानते है कि इस संसार का अस्तिव और प्रारम्भ आपका जीवन व सब कुछ सिर्फ एक श्रेष्ठ हाथों में है।
     वर्तमान समय की स्थिति यह है कि जब जान की बात आ जाए तो सवर्ण वर्ग सिर्फ उस आवश्यक वर्ग के खून की खोज करता है न कि अपने जाति या वर्ग के व्यक्ति के रक्त का, रेस्टोरेंट में जाने पर भोजन बनाने वाले के जाति का ब्यौरा नही लेता बल्कि स्वाद का हाल जानता है वही घर पर काम करने वाली के बारे में जांच पड़ताल होती है,बाहर आप बोल देते हो कि कोई काम धंधा नही कर पाती और खुद कोई काम नही देना चाहता ,अपनी सर्वोच्चता के लिए लोगों की मदद तो करता है लेकिन एक उम्मीद साथ में लगी होती है । 
     प्रेम सिर्फ भाव और एहसास है वह किसी के लिए हो सकती है,किसी भी उम्र से हो सकती है,किसी जानवर से हो सकती है ,वृद्ध से हो सकती है ,इस विश्व मे ऐसा कौन है जो प्रेम की भावना को महसूस नही कर सकता है ,स्पर्श व अहसास ,भाव से दो अंजान व्यक्ति ,कोई जानवर आपसे प्रेम करने लगता है ,भाव ही है जो लोग को जोड़ देता है जरूरी नही है कि हर प्यार का मतलब शरीर का मिलना है शरीर तो बस आकर्षण है प्रेम नही ,सच में प्रेम जो है मन ,व्यवहार ,आपके शब्द ,आपके सम्मान से निःस्वार्थ होना चाहिए ।
आज का सबसे कड़वा सच जो कि युवा वर्ग या सम्बन्धित लोगों में प्रकट हो रहा है वह यह है कि लोंगो में भाव का स्थायित्व ही नही है ,हर कोई प्रेम का मतलब तक नही जानता झूठे वादे,दिखावा,कसम ,मरना-जीना लगा रखा है ,उसकी अंतिम ईच्छा शरीर का मिलना ही मानते है उसके बाद की सच्चाई से सब रूबरू है ,आज का व्यक्ति इतना स्वार्थी है कि आप सब कुछ लुटा कर किसी से प्रेम करिए तो कुछ वक्त के बाद चरित्रहीन है आप लोगों से बात करते है तो आपका यह पेशा है अतः सम्पूर्ण समर्पण सिर्फ ईश्वर के सामने ही किया जा सकता है जहाँ आपको अपने सम्मान की चिंता नही करनी है ,धन ,दौलत ,अहंकार सब खत्म हो जाता है लेकिन मनुष्य के सामने हमेशा आपको अपने व्यक्तित्व, अपने सम्मान, अपने अभिवृत्ति से यदि समझौता या उसके सामने झुकना पड़े तो वह प्रेम हो ही नही सकता ।
   लोग वीआईपी की अलग लाइन में लग कर मंदिरो में दर्शन को जाते है क्या वह ईश्वर के सामने अपना वैभव प्रदर्शन में जाते है या लोगों को दिखाने के लिए ऐसा करते है ?जिस ईश्वर ने इस संसार को बनाया है आप उसके सामने अपने को क्या साबित करना चाहते है?
      प्रेम तो गुस्से ,नाराजगी,खामोशी हर रूप में लेकिन शर्त यह है कि समझने वाले इंसान नही है क्योंकि लोग प्रेम को भी दिखावें का पर्याय मानने लगे है ,समाज में लोगो की मदद बहुत से लोग अपने अपने तरीकों से करते रहते है लेकिन उन्हें किसी के प्रशंसा की कोई आवश्यकता नही होती है वह है भाव । 
                  प्रेम ही इस संसार को बचाएं हुए है मानवता ,दया ,सेवा ,धर्म सभी प्रेम के ही रूप है लेकिन भावनाओं का सच होने आवश्यक है सच क्या ?सच ,उचित का मानदंड क्या है यही न कि किसी का अहित न हो ,किसी को आपके कारण रत्ती भर कष्ट न मिले ,किसी का नुकसान न हो ,कोई बच्चा आपकी योग्यता है फिर भी वह आपके सामने भूखा, नँगा,या फिर वस्त्र न होने पर कड़कड़ाते हुए है तो आप मे भावना है ही नही । 
        प्रेम के कई रूप है प्रेम आपके मन में है कि जब आप देख रहे हो कि छोटे बच्चें कद से भी लंबे झोले लिए कूड़े बीनते हो,वस्त्र न होने पर ठंड से कांप रहे हो बच्चे ,वृद्ध आराम करने की उम्र में घर से बेदखल कर दिए गए हो यह सब देख कर आपका हृदय रो पड़े,आप मदद करे वह है प्रेम ......
       अगर आपके अंदर प्रेम है तो आप कभी किसी से नफरत नही कर सकते है ...
     प्रेम सिर्फ प्रेम की भाषा सुनता है न की अन्य ............
   प्रेम और सम्मान एक दूसरे के पूरक है ।

महिमा यथार्थ ©

13 comments:

महिमा सिंह said...

समाज के बदलते परिदृश्य में भावनाओ,विचारों में होने वाले अतीत से वर्तमान तक का एक विचार

Unknown said...

♥️बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति महिमा👌

Pedro F. Correia said...

Have you been published? Amazing text!

एक किरदार said...

प्रेम की परिकल्पना अतिसुंदर 👌👍👏

Unknown said...

बहुत बड़िया महिमा

महिमा सिंह said...

Wow,to real

Kundan Singh said...

प्रेम दुनिया को बचाये हुए है ,अगर आपके अंदर प्रेम है तो आप किसी से नफरत नहीं कर सकते,ये यथार्थ है।

Sarita said...

Bhaut khoob

Adarsh said...

Nice

Krishna Pal Megh said...

बेहतरीन आलेख...
प्रेम की वास्तविक परिभाषा को सटीक,
साधारण सुदूर ढंग से यथार्थ सोच के साथ समझाया है आपने।
कुछ असामाजिक तत्वों की वजह से "प्रेम" शब्द की दुर्गति हो गई है,
जिसके कारण मानव जाति में इंसान इंसान के मध्य भावनाओ की गहरी खाई होती जा रही है।

Krishna Pal Megh said...

बेहतरीन आलेख...
प्रेम की वास्तविक परिभाषा को सटीक,
साधारण सुदूर ढंग से यथार्थ सोच के साथ समझाया है आपने।
कुछ असामाजिक तत्वों की वजह से "प्रेम" शब्द की दुर्गति हो गई है,
जिसके कारण मानव जाति में इंसान इंसान के मध्य भावनाओ की गहरी खाई होती जा रही है।

Unknown said...

Absolute

kanishk said...

जहा तक हमारी सोच है महिमा जी सभी औरते प्रेमी के तौर पर शाहजहां ही नही चाहती कि ताजमहल स्मृति बना दे..
और न ही मजनू के लैला जैसी होती ..
और न ही रान्झा के हीर जैसी...
कुछ औरते फगुनिया बनकर दशरथ माशी की ख्वाहिश में है जो केवल उसी के पायल के छुनछुन की धुन के सहारे इस बीरान में कोई रास्ता निकाल दे पूरे समाज के लिए...
इसलिऐ किसी से प्रेम करना आकर्षण हो सकता है..
लेकिन ताउम्र उसी से प्रेम करना अवश्य ही प्रेम है...
प्रेम के बस मे सब है बस सबके बस मे प्रेम नही..

आखिर क्यों

    In this modern era,my emotional part is like old school girl... My professionalism is like .. fearless behavior,boldness and decisions ...