मैं थोड़ा शांत स्वभाव की हूं अपने बाहरी और व्यावहारिक जगहों पर ,लेकिन यह गलत तो नहीं है,मुझे अपने ऐसा होने से प्रेम है क्योंकि मैं अपनो के बीच बच्ची, पागल ,बेपरवाह रहना चाहती हूं अपनी मस्ती में मस्त और बहुत सारा प्यार देने और लेने वाली !
मुझे अपनों का ध्यान रखना ,उनकी छोटी -छोटी बातों का ध्यान देना ,ध्यान रखना ,अच्छा खाना बनाना ,खाना सब बहुत पसंद लेकिन अपनी मर्जी अनुसार ,किताबें पढ़ना !
हां ,मुझे व्यवस्थित रहना ,जीना, व्यवस्थित कमरा ,एक छोटा जीवन जीने का स्वानुशासन पसंद है,मुझे प्रकृति से प्यार है मुझे महसूस करना होता है हर चीज चाहे वह हवा हो,पर्वत हो, झरने हो,किसी को तकलीफ़ में देख पाना सम्भव नहीं है ,
अक्सर मेरी नजरें उन पर टिक जाती है जो मजबूर होकर या आर्थिक तंगी की वजह से मलीन बस्तियों में रहने को मजबूर है ,उनके बच्चों की आंखों में सपने के बजाय पेट भरने की उम्मीद है कि काश!मैं सोच कर कांप जाती हूं कि जहाँ हम पैर तक रखना पसंद नहीं करते वहाँ वह अपनी पूरी जिंदगी काट रहे है ! जब भी मेरी नजर ऐसी जगहों पर जाती है मैं अपने आपको शांत करने के लिए एक लंबे रास्ते का तन्हा सफर तय करती हूं ताकि कुछ तो हल कर सकूं, तमाम लोग सोचेंगे कि सिर्फ सोचने और कहने से कुछ नहीं होगा जानती हूं मैं भी लेकिन मैं अपने अनुसार जो कर सकती हूं करती हूं,मग़र मैं शांत नहीं हो पाती।
मुझे याद है अभी दो दिन पहले की बात है मैं साइक्लिंग के लिए गयी थी और थक कर सड़क किनारें रुकी थी ,एक बच्ची लगभग 15 वर्ष की होगी कूड़ा उठा रही थी क्योंकि उसकी ड्यूटी थी ,वह मेरी तरफ देखी तो मुझे लगा कि उसे बात करनी है मुस्कुरा रही थी,बोली
'दीदी ठंड बढ़ गयी है आपको नहीं लग रही ,मैंने बोला कि मैं साइक्लिंग कर रही हूं तो मुझे अभी नहीं लग रही,लेकिन ठंड बढ़ रही है'
थोड़ी सी बात चीत की बड़ा सुकून मिला जैसे मानो "रेतीले रेगिस्तान में वृक्ष की छाया " उसके मुख से निकलते शब्द मुझे,ईश्वरीय वाणी की तरह कानों को प्रिय लग रहे थे, उसका मुस्कुराता चेहरा मुझे बहुत ही खूबसूरत लग रहा था।
बुरा तो तब लगता है जब आप अपनी भावनाएं बोलो किसी से और सामने वाले को लगे कि बस बात करा लो,सब ढोंग ही है।
मुझे हँसी आती है कि लोगों की संवेदनाएं मर रही है तो उसमें मेरी कोई गलती नहीं ,अपने आपको शांत और निर्मल बनाए रखना बहुत आसान है यदि आप चाहो!
मुझे दोस्त वही चाहिए जो साथ दे ,साथ रहे मेरे इस थोड़ी सी व्यवस्थित दुनियां में मेरा बचपन और स्कूलिंग इसलिए बहुत प्यारा क्योंकि सुबह हम दो मैं मेरी दोस्त लम्बी साइक्लिंग करके जाया करते थे ,खेत, खलिहान,बच्चें सब हमारी जीवन के अनमोल हिस्से है ,
बड़े होने पर लोगों की इज्ज़त कम होने लगती है पता नहीं कैसे,लोग क्या कहेंगे यह बीमारी जो लग जाती है हम भूल जाते है कि हमें क्या पसंद है ,क्या अच्छा लगता है ,,, फिरहाल अभी मैं थक गई!
आगे सिलसिला जारी रहेगा✍️
राधे राधे
महिमा सिंह©
2 comments:
राधे राधे बहुत ही उत्कृष्ट ♥️��
राधे राधे बहुत ही उत्कृष्ट
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