खामोशी के साथ सब कुछ देखते रहना किस हद तक सही है ?क्या आज तक जितने भी काम किये गए हैं चाहें बात आजादी की हो या अधिकार की या अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की हो किसी न किसी के द्वारा उसकी शुरुआत की गयी है तभी आज हम आजादी,संवैधानिक अधिकारों, सुरक्षा , अभिव्यक्ति ,स्वतंत्रता और गौरवमयी जीवन जी रहे हैं, तो फिर आज हम क्यों लगातार बढ़ती हिंसा,अपराध,बलात्कार,भ्रष्टाचार, एसिड अटैक व अन्य अपराधों के लिए आवाज नहीं उठाते जब तक कि बात व्यक्तिगत नहीं हो, आखिर क्यों?
परिवर्तन अटल सत्य है, लेकिन बिना प्रयत्न के संभव भी नहीं है ,बीते दिनों हिंदी दिवस के अवसर पर लगभग सभी के स्टेटस, सोशल मीडिया, व अन्य जगह काफी सम्मान दिया गया लेकिन विचारणीय है कि क्या यह या इसके पीछे के उद्देश्य यथार्थ रहे है, नहीं ? सामयिक समय की मांग और या यूं कहें तो लोगों की इच्छा नहीं मजबूरी या जरूरत है कि उन्हें अन्य भाषाओं की तरफ अपना आकर्षण रखना ही होगा क्योंकि भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो हिंदी हमारी मातृभाषा है लेकिन मांग नहीं है, जरूरत नहीं पूरी हो सकती है आज भी यहाँ लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण अंचल में निवास करती है ,बच्चों की आधारभूत शिक्षा वहीं से होती है ,अन्य भाषा एक डर भी है और उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी, कहीं न कहीं ,जितने भी कर्मचारी हैं उन्हें सेवा जिसे देनी है वह आज भी लगभग अन्य भाषा की अपेक्षा मातृभाषा में बेहतर है ।
बात की जाती है कि अन्य देश जैसा कि जापान ,यूएसए इतनी तरक्की पर क्यों हैं, उन्होंने अपने तकनीकी शिक्षा व अन्य क्षेत्रों में अपनी मातृभाषा को अहमियत दी है,मातृभाषा में शिक्षा व्यक्ति को सहज,सृजनात्मक ,साहित्यिक और कल्पनाशील बनाता है। किसी भी देश के लिए शिक्षा,स्वास्थ, तकनीकी विकास ,सूचना प्रौद्योगिकी व अन्य क्षेत्रों में आशातीत विकास की जरूरत है।।
भूमण्डलीकरण के कारण आज प्रत्येक देश एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, लेकिन अपनी मातृभाषा और अपनी जनता ,युवा समाज की सृजनात्मक क्षमता के विकास हेतु व लोगों को कार्यालय से जोड़ने , जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकता है कि मातृभाषा को ज्यादातर अपनाया जाना चाहिए ।
हम भारतीयों में एक अलग ही तरह की मानसिकता है या यूं कहें तो लगातार मातृत्व मृत्यु दर,यौन समन्धित बीमारियों, बलात्कार अन्य अपराध कहीं न कहीं कारण है अनवरत लोंगो में घटती सहनशीलता,धैर्य और बढ़ती क्रोध,अहंकार, लालच,कामवासना है ,ज्यादातर पाया गया है कि लोग कामवासना को अपने दिमाग में हर क्षण रखते हैं और अपने काम,अपनी प्राथमिकता को हमेशा द्वितीयक मानते है जबकि पश्चिम के देशों में देखा जा रहा है कि लोग अपने काम ,अपनी प्राथमिकता को दिमाग में रखते है जबकि कामवासना को उसके सही जगह ,जिसके कारण वह लगातार विकास कर रहे हैं ,कुछ नया सृजन कर रहे हैं ,नवाचारी विचार कर रहे है,अनुसंधान कर रहे हैं और समाज व राष्ट्र की सेवा में अग्रणी है ।
हिंसा ,यौन अपराध ,बलात्कार जैसी घटनाएं लगातार भारत में बढ़ती जा रही है इन क्षणिक सुखों की पूर्ति की इच्छाशक्ति लोगों में इतनी ज्यादा बढ़ती जा रही है कि लोग इसके लिए किसी भी हद तक जाने से पीछे नहीं हट रहे हैं। बार-बार बातें सामने आती है महिलाएं असुरक्षित है इनके साथ यह गलत हुआ ऐसा हुआ यह सत्य तो है कि लेकिन अगर सही ढंग से विचार किया जाय तो सही यह भी है कि जिम्मेदार कहीं न कहीं महिला वर्ग भी है ,कुछ वक्त पहले ही सामने आयी सोशल मीडिया की एक पोस्ट थी और शायद लोगों में मानसिकता भी की एक माँ अपने अंगप्रदर्शन बहुत ही गलत ढंग से कर रही है और फिर बोल रही है कि जब भी भविष्य में मेरे बच्चें देखेंगे तो बोलेंगे की माँ कितनी कमाल की थी ,सही है कि यह व्यक्तिगत सोच हो सकती है लेकिन कहीं न कहीं यह उस सम्पूर्ण वर्ग और भविष्य में भी खतरा है उस वर्ग के साथ ,प्रायः विधवा आश्रम,अनाथालय में उच्च पदों पर महिला वर्ग ही है तो कैसे यह सम्भव हो रहा है कि वहां से लड़कियों की तस्करी,वैश्यावृत्ति व अन्य में महिलाएं जा रही हैं, हम व्यक्तिगत मानसिकता लोगों की न खत्म कर सकते है न ही बदल सकते है ,स्वार्थसिद्धि ,व्यक्तिगत हित की पूर्ति के लिए सारे अनिष्ट कृत्य किये जा रहे है क्या यह विचारणीय नहीं है ?
नियत और नियति में व्याकरण के स्तर से बहुत कम अंतर है परंतु नियति अच्छी है तो ठीक है सब लेकिन अगर नियत अच्छी है तो नियति तो साथ होती ही है और मन मे शांति और संतुष्टि के साथ सेवा का भाव भी है ,नियत ही अच्छी न होने के कारण ही आज लगातार भ्रष्टाचार, असहनशीलता, लोभ ,माया सब बढ़ती ही जा रही है और यह न केवल व्यक्तिगत क्षति है बल्कि यह राष्ट्र की सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक ,सामाजिक क्षति है , विचारणीय है और चिंतनीय विषय भी ।
गलत,बुरा,या पाप को सहने वाला भी जिम्मेदार है उतना ही जितना कि करने वाला -गीता में स्पष्ट शब्दों में वर्णित है और अटल सत्य भी है ,परिवर्तन और बदलाव संसार का नियम है उसके लिए हमें आवाज उठानी होगी ,मौन रहना अच्छी बात है लेकिन समझदारों का मौन होना बहुत ही गलत बात है वह न सिर्फ आज बर्बाद करेगा बल्कि आने वाले कल को भी प्रभावित करेगा ।
विचार करें कि क्या यह मानवता के अंत का आरम्भ नहीं हो रहा !
12 comments:
बहुत बड़िया बात कही है आपने
बहुत बड़िया
बहुत बड़िया
विचारणीय
बहुत बड़िया
बहुत बड़िया
बहुत बड़िया
Nice
Very very true and realistic
Very well written
Thanks to all ,
लेकिन उद्देश्य है कि लोग सच से सिर्फ रूबरू ही न हो बल्कि इस सच को परिवर्तित करने का प्रयास करें।
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