Monday, November 9, 2020

सोशल मीडिया : भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का अनदेखा प्रभाव



जिम्मेदार कौन ,केवल हम सब ,आभासी दुनियां में हम इतने गुम है ,मनोरंजन बेहद पसन्स है चाहे लिबास का हो या जिस्म का लेकिन अपने घर के महिलाओं ,बेटियों को छोड़ कर ,हम  भूल जाते है कि हर कोई महिला किसी न किसी परिवार से जुड़ी  ही हैं यह तो है एक पक्ष ,परंतु इसके दूसरे पहलू पर गौर हम कभी नहीं करते व्यक्तिगत हित के लिए ,कुछ क्षणिक सुख के लिए,
आर्थिक परंतु सरल रास्तों की खोज में,शारीरिक सुख के लिए समझौता कर लेते है और नाम मजबूरी का देते है ।
             आर्थिक रूप से सशक्त होना जीवन में सांस लेने जैसा आवश्यक है सब कुछ स्वतंत्रता में ही निहित है चाहे वह विचारों की स्वतंत्रता हो या अपने ढंग से जीवन जीने के लिए ,किसी की मदद करने के लिए ,जब तक हम किसी के अधीन है तब तक हम अपने ढंग से नहीं जी सकते ,अपनी रुचि के अनुसार काम नहीं कर सकते,  लेकिन केवल जीवनयापन के लिए यह आवश्यक है ,भौतिक व शारीरिक सुख के लिए पैसे की जरूरत है लेकिन मन ,आत्मा की शांति के लिए केवल अच्छे मनोभावों की आवश्यकता है ,न किसी छल की ,न ही किसी दिखावे की ,न ही किसीके समक्ष खुद को दर्शाने की ।
          आज के परिदृश्य में सोशल मीडिया का जो भावनात्मक स्वरूप दृष्टिगोचर हो रहा है वह न सिर्फ मानसिक तनाव के रूप में बल्कि मानवता की क्षीणता ,संस्कृति की क्षीणता ,अपनेपन की क्षीणता, मतभेद के साथ-साथ मनभेद के उतरोत्तर वृद्धि पर है,असमानता ,खुद को दिखाने की पुरजोर कोशिश में हम जो खो रहे है उस पर कभी  ध्यान भी नहीं जाता है।
अपने आप को लोग सिर्फ फॉलोवर्स के नंबर पर,लाइक, कमेंट और साझा करने तक ही समझने लगे है जहाँ धीरे-धीरे यह पारिवारिक अलगाव में वृद्धि कर रहा वही यह खुद से ही खुद के मूल स्वरूप से भी दूर कर रहा है।
             सोशल मीडिया और वास्तविक जीवन लोग कहते तो है अलग है लेकिन इस आभासी दुनियां का पूरा प्रभाव वास्तविक जीवन पर तो भरपूर है ही परंतु विचारों में भी है प्रायः यह देखा जा रहा है कि हम किसी भी तरह के पोस्ट ले ,चाहें वह  यौन  सम्बन्धी हो या किसी महिला के अंगप्रदर्शन से सम्बंधित हो,जाति-पात से ,साम्प्रदायिक  हो व अन्य जो कि संवेदनशील मुद्दे है हम उन्हें चाहते है कि लोग ज्यादा से ज्यादा पसंद करे ,टिप्पणी दे परन्तु जब वही टिप्पणी वास्तविक रूप में सामने होती है तो वह अभद्र टिप्पणी, छेड़खानी,राष्ट्रविरोधी हो जाती है इतना दोहरा विचार ,इतना दोहरा चरित्र समाज में कैसे और क्यों ,यह किस हद तक सही है ?
        यौन शिक्षा लोगों  को लेने में शर्म आती है ,उससे संस्कृति क्षीण होती है लेकिन इसमें शामिल होना या इस तरह के पोस्ट को प्रमोट करना परोक्ष रूप से क्या यह, प्रभावित हमारे वास्तविक जीवन को नहीं करता,जो आभासी दुनियां में बहुत अच्छा है वह जब सच में हो रहा तो गलत क्यों? महिला हो या पुरुष कोई भी अछुता नहीं है इस हो रहे कृत्य से ,प्रश्न खड़े होते तो है विचार सही नहीं है लेकिन इसके पीछे का वास्तविक कारण सब अनदेखा करते जा रहे है ,विचार हमेशा वास्तविक परिदृश्य से बनते है लेकिन हम तो दोनों के बीच भवँर में फंसे है आभासी दुनियां में जो बेहतर है आपकी पहचान मानी जानी है वही वास्तविक जीवन के सच से कोसों दूर है ,कैसे हम सोच सकते है कि लोगों के विचार अच्छे हो समानता आये महिला पुरुष में,विचारों में हो ही नहीं सकता ।सबसे पहले हमें खुद के इर्द गिर्द घूमती इस दुनियां को एक जैसा करना चाहिए ,करते कुछ नहीं कि सही हो लेकिन उम्मीद करते है कि सब लोग के विचार ,भाव ,महिलाओं या पुरुषों के लिए उनकी सोच समान हो ।
           बच्चें के दिमाग पर ,उसके विचार,भाव, लिंग विभेद व अन्य का प्रभाव उसके बचपन में ही पड़ता है ,जो भी बातें हम बचपन में हँस कर ,गलती मानकर अनदेखा करते है उसका प्रत्यक्ष प्रभाव उसके युवा होने की अवस्था में दिखाई देता है ।सुधार की अगर अपेक्षा समाज से की जा रही है तो क्यों वह सुधार स्वयं से या खुद के घर आस -पास के परिदृश्य से ,विद्यालय  व अन्य से नहीं,आखिर क्यों  ?   


महिमा©


3 comments:

Adarsh said...

Nice 👍👍👍👍👍👍👍👌👌👌
👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌🥳🥳

Unknown said...

Spectacular expression 👌

Unknown said...

बहुत ही सही कहा आपने... पर ये भी सत्य है कि सोशल मीडिया आज की आवश्यक बुराई है!
इसमें सुधार की बहुत ज्यादा जरूरत है

आखिर क्यों

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