हमें हमेशा बड़ो की इज्जत करना सिखाया जाता है ,जो कि सही भी है और यह अपना -अपना व्यक्तिगत व्यवहार भी है ,लेकिन यह कभी नहीं बताया जाता है कि बड़े लोगों के सभी व्यवहार, सभी काम,उनके अनुभव ,उनके विचार हमेशा सही ही हो यह जरूरी नहीं है ,इसलिए हमेशा आँख मूंद कर हर बात नहीं मानी जानी चाहिए ,न ही अपने को इस बात से परखना चाहिए कि मैं छोटा हूं तो सामने वाला हर बात सही ही कह रहा है ,इसमें सिर्फ आपकी गलती है ,बेवकूफ़ी है और नादानी है कि आप खुद को कम समझो या पूरी तरह प्रभावित हो किसी से ।
जबकि बच्चों के साथ बुरा कभी बच्चें नहीं करते है ,अगवा कर लेना,बलात्कार करना, फुसला लेना ,बुरा या अच्छा स्पर्श ...हम अभिवावक बताते है कि ये सही होता है यह गलत होता है लेकिन एक वक्त के बाद मैंने यही पाया है कि हम नहीं बताते कि समाज कैसा है ,कैसे वह दिग्भ्रमित करता है,कैसे आपको बातों से,व्यवहार से छलता है यह सब 95% युवा अपने ही अनुभवों से सीख रहे है जबकि यह बहुत ही आवश्यक है बताना और इतना स्वभाविक माहौल और व्यवहार घर,परिवार,माँ-बाप का होना चाहिए कि हर बच्चा आ कर बता सके या आप बता सको ,समझा सको कि कितने पैतरे आजमाए जाते है किसी से काम निकलवाने के लिए ,बच्चों को जब तक एहसास होता है कि उनकी कट गई है या उनका उपयोग किया गया है तब तक वे अपना आत्मविश्वास, अपना अस्तित्व, अपनी इच्छाशक्ति खत्म कर चुके होते है ,बहुत कम ही होते है जो पहचानते है कि उनका अपना अस्तित्व ख़तरे में है और उन्हें बहुत जरूरत है कि वह सिर्फ अपने आप के लिए खड़े हो और बेख़ौक निर्णय ले सके।
हां, जानती हूं कई लोगों को लगेगा कि कोई इतना बेवकूफ नहीं होता लेकिन सच्चाई यही है कि ज़्यादातर बच्चों को सिर्फ अच्छा ही सिखाया गया है कभी बताया ही नहीं गया कि व्यक्ति का वस्तुकरण शुरू हो चुका है और इसके अनगिनत पहलू है इसलिए उम्र और लैंगिक वरीयता जो समाज ने दिया है उससे ऊपर अपने विवेक और व्यवहारिक पहलू पर काम किया जाना चाहिए और परिवार द्वारा बताया जाना चाहिए । जब -जब आप अपनी महत्ता कम करके बार-बार किसी को महत्वपूर्ण और उपलब्ध बनाते हो तो आप बेमोल और बेक़द्र होते हो और यही एहसास आपको आंतरिक रूप से कमज़ोर और आत्मविश्वास विहीन कर देगा ,यह वाकई ऐसा ही है जैसे जीते हुए भी मरे हुए हो जाना ।
स्वयं को चुनना ,अपने अस्तित्व को चुनना ,अपनी प्राथमिकता को चुनना कभी स्वार्थ नहीं होता है।महिमा यथार्थ©
ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य है कि लोग जाने की समाज में दरअसल किस तरह की मान्यता है ,क्या गलत हो रहा है ,हम इसके लिए क्या कर सकते है ,हम किस तरह व्यक्तिगत जीवन में परिवर्तन कर समाज में अपनी कुछ सहायता कर सकते है ,क्योंकि बदलाव हमेशा एक व्यक्ति के सोच से आरम्भ होता है और परिवर्तन में लोगो की सहायता और सहयोग से बड़े परिवर्तन किए जा सकते है ,हमनें सहयोग से आजादी ,अधिकार, स्वतंत्रता पायी है लेकिन अब इसको व्यक्तिगत स्तर से समाज में पाना अभी बाकी है अतः एक व्यक्ति का सहयोग भी बड़े परिवर्तन की ओर पहला कदम है।
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आखिर क्यों
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