Monday, July 25, 2022

विधवा

लंबे अर्से से बीमारियों से जूझते देख रही वो,
एक उम्मीद का दिया जलाएं खुशी से जीए जा रही वो,
अचानक मिज़ाज ए तबियत बिगड़ने लगी और,
अस्पताल की दौड़ के आरम्भ के साथ ,
सलामत घर लौटने की उम्मीद भी,
कभी पैसों की चिंता तो कभी भोजन की परवाह लोंगो में,
वो गम में डूबी और हौसलों से सराबोर भी,
कहीं खो न जाए कोई अपना,
अपने पिता की एक नन्हीं सी जान है अभी वो,
लेकिन उसे खबर भी नहीं कि अब मुलाकात न होंगी,
अचानक एक दिन बेजान शरीर घर आयीं,
वह भी जाना चाहती थी साथ उसके,
जिसका हाथ थामे चली थी बाबुल के घर से,
मगर अपने नन्ही सी परी को ,
अभी दुनियां से रूबरू  करवाना है,
सब इस दुःखद घड़ी में आ रहे है,
दूर खड़े उदास हज़ार चेहरे है,
वह सीने पर सिर रख ,
यमराज से लौटाने की ज़िद कर रही,
हर क्षण,प्रति पल कोई न कोई शमसान जा रहा,
एक ही क्षण में वो,सुहागन विधवा कहलाने लगी,
बड़ी शालीनता से दूसरों को हाथ दे चूड़िया तोड़वा रही वो,
सबके चले जाने की उम्मीद मन में लिए ,
फिर से कब्र जाने की सोच रही वो,
न जाने क्यों उसे अब अस्तित्व रहित स्त्री से,
अस्तित्वहीन मान लिया गया,
न जाने क्यों उस नन्ही सी जान को अब,
अनाथ सा और मनहूस मान लिया गया,
न जाने क्यों उस माँ बेटी को अब,
दयनीय मान लिया गया,
न जाने क्यों अब उसे श्रृंगारहीन मान लिया गया,
न जाने क्यों उस स्त्री के जीवन को अब,
सार हीन मान लिया गया,
न जानें क्यों उसे अब,
सार्वजनिक संपत्ति सा मान लिया गया,
आखिर क्यों और कब  तक ?


3 comments:

Sarita said...

Nice

Sarita said...

Nice

Unknown said...

इस प्रकार की सामाजिक कुरीतियों में बदलाव की अत्यंत आवश्यक है... आशा है कि लोग इसे पढ़ कर विचार करेंगे और बदलाव जरूर करेंगे

आखिर क्यों

    In this modern era,my emotional part is like old school girl... My professionalism is like .. fearless behavior,boldness and decisions ...