घरेलू हिंसा जैसा कि शब्द से ही अर्थ प्रकट होता है कि घर में होने वाली हिंसा चाहे वह बच्चियों के साथ हो या महिलाओं के साथ। हिंसा विभिन्न प्रकार के हो सकते है जैसे मानसिक ,शारिरिक , यौनिक हिंसा व अन्य ,हिंसा से तात्पर्य है कि कोई भी ऐसा कृत्य जो कि उक्त व्यक्ति की इच्छाओं के विरुद्ध हो रहा है ।
भारतीय परिदृश्य में परिवार ,समाज ,परम्परा ,रीति रिवाज को हमेशा से व्यक्ति की इच्छाओं से सर्वोपरि माना जाता है खाशकर जब बात महिलाओं की हो ।
महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में सबसे बड़ा अपराध उनके पतियों और सम्बन्धियों द्वारा किया गया क्रूरता पूर्ण व्यवहार है ।हर एक घंटे में ऐसे 10 मामले दर्ज होते है यह तो रिपोर्ट किये गए आकड़ो का जायजा है लेकिन भारतीय समाज में पारिवारिक व सामाजिक प्रतिष्ठा का हवाला देकर ऐसे मामले अक्सर दर्ज ही नहीं कराए जाते है।छेड़छाड़ ,पतियों द्वारा बलात्कार,दहेज उत्पीड़न ,स्वतंत्रता पूर्व जीवन जीने का अवरोध व अन्य ऐसे मामले है जो लगातार बढ़ते ही जा रहे है ।
घरेलू हिंसा में महज शारिरिक हिंसा ही नही आता है मानसिक हिंसा जैसे पढ़ने से रोकना ,मर्जी के विरुद्ध शादी तय करना ,अपनी मर्जी के व्यवसाय चयन करने से रोकना, आवागमन की स्वतंत्रता का न होना ।
मौखिक हिंसा ,भावनात्मक हिंसा ,आर्थिक हिंसा भी घरेलू हिंसा का ही भाग है ।
आज की स्थिति यह है कि महिलाओं के अंदर डर और अपनी बात न कह पाने की स्थिति इस कदर बन गयी है कि अपने साथ हुए बर्तावों को वह अपनी मां - बाप से भी नहीं कह पाती है इसका मुख्य कारण यह है कि अक्सर ऐसे मामले में उन्हें सम्मान की दुहाई देकर चुप करवा दिया जाता है या उनकी बात को अनदेखा कर दिया जाता है ,खाशकर यौनिक हिंसा ।
यौनिक हिंसा का सबसे गहरा प्रभाव महिला के मानसिक स्थिति पर पड़ता है ।
भारतीय परंपरा में शादी के बाद महिलाओं को यह सिखाया जाता है कि अब पति का घर ही उसका घर है और उसकी इच्छा ही सर्वोपरि है ,जिसके कारण अपनी इच्छाओं के विरुद्ध अपने पति द्वारा किये गए बलात्कार को भी न चाहते हुए भी स्वीकार करती है ।
दहेज उत्पीड़न के कारण उन्हें जलाकर मार दिया जाता है या पूरे जीवन उन्हें अपशब्द ,गालियां ही सुननी पड़ती है ।
ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ अशिक्षित महिलओं या जो जागरूक नहीं है उन्ही के साथ हो रहा है ,ऐसा पाया गया है कि बड़े -बड़े ,व अच्छे परिवार से सम्बंधित महिलाओं के साथ मानसिक उत्पीड़न, मारपीट जैसी हिंसा होती है लेकिन पारिवारिक मर्यादा व अन्य कारणों से वह कोई भी प्रतिक्रिया नहीं देती है ।
ध्यातव्य है कि समाज का परिदृश्य बदल रहा है महिलाएं हर क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना रही है व एक नया मुकाम हासिल कर रही है लेकिन इसकी प्रतिशतता बहुत ही कम है ,आर्थिक रूप में निर्भर महिलाओं का जीवन काफ़ी सुखद स्थिति में आ गयी है परंतु जहाँ बात आती है सम्पूर्ण भारतीय परिदृश्य की तो यह बहुत कम संख्या में है आज भी आधे से ज्यादा आबादी घर में निवास करती है ।
जब पहली बार किसी स्त्री को अपशब्द बोला जाता है,या किसी तरह के शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना दी जाती है तो वह उसे महज एक दुर्घटना मान लेती कि गुस्से में या गलती से हो गया होगा या वह रिश्तों की मर्यादा समझ कर एक माफी पर सब भूल जाती है आखिर क्यों ?
वही अगला व्यक्ति फिर वही दुहराता है और फिर आपकी माफी सामने वाले को यह भ्रम में डाल देती है कि यह कमजोर है और यह कुछ भी नहीं कर सकती चाहे वह आपकी सहनशीलता है या बच्चों के भविष्य की चिंता ,धीरे-धीरे यह आपकी जिंदगी का सबसे बुरा समय बन जाता है जिससे मानसिक,शारीरिक प्रताड़ना का रूप ले लेती है ,अतः गलती यह है आपकी कि आपने सामने वाले कि पहली गलती माफ कर खुद ही उसे बढ़ावा दिया है ,पहली ही गलती क्यों न हो माफी की कोई गुंजाइश नही होनी चाहिए ।
मजबूरी अगर बनती है तो वह इसलिए क्योंकि आर्थिक कारण सबसे ज्यादा जिम्मेदार है ।
मानसिक रूप से शसक्त होना पड़ेगा महिलाओं को आपके साथ हो रही हिंसा में कही -न -कही हमारे निर्णय न लेने की क्षमता ही सबसे बड़ी कारण है ,
इसका समाधान यही है कि हम आर्थिक रूप से स्वनिर्भर बनने का पूर्णतः प्रयास करे।
घरेलू हिंसा किसी न किसी रूप में प्रत्येक दूसरे घर में बनी हुई है चाहे वह मानसिक हो ,मौखिक हो ,शारिरिक हो ,भावनात्मक हो अतः इससे रोकथाम में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षा ,जागरूकता ,आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर ही किया जा सकता है ,क्योंकि हिंसा करना न करना यह एक मानसिक और नैतिक विचार की उपज है परन्तु कानूनी रूप से जागरूक होना भी इससे बचने में काफी मददगार साबित होना चाहिए।