Tuesday, August 31, 2021

आजाद रूह



✨🖋️📜 सोच - चाहत हर मन की ⏳✒️
   आजाद रूह - प्रेम 

न जाने क्यों
एक नहीं !
उनकी अकड़ को ठेस दे जाता ,
अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह जैसा उन्हें लग जाता,
मन को मानो खंडित कर जाता,
गुरुर को मानो चोटिल कर जाता,
क्यों है इतनी कमजोर कड़ी,
एक नहीं से टूट जाती!
प्रीत पसंदीदा समुंदर जैसा है ,
जिसमें डूबे तो डूबता जाता ,
अनन्त ,असीम गहराइयों तक,
मगर मर्जी प्रीत की दोनों ओर हो !
अस्तित्व है उनका भी तो ,
कठपुतली न है वो धरती पर,
नारी प्रीत करे है डूब कर,
हो सम्मान और प्रेम हो ,
फिर क्यों?
तोड़ा जाता अन्तर्मन  उसका ,
खंडित कर दी जाती उनकी अस्मिता ,
क्यों चोटिल कर दी जाती विश्वास,
वस्तु नहीं जो हासिल हो ,
सृजन और शक्ति है उनमें ,
स्वतंत्र ईच्छा सम्पूर्ण प्रेम है उनका !
    
     " प्रीत होइ पंछी के जैसा ,
  उन्मुक्त गगन हो उसका घरौंदा,
  कण -कण प्रकृति हो उनका अपना ,
    आजाद रूह ,पहचान प्रिया की "
 
महिमा यथार्थ©©

Tuesday, August 17, 2021

प्रेम


हूं साँस नहीं हूं डोर नहीं,
बस हर पल हूं साथ खड़ी,
नीर नहीं सिंचित मन की ,
रक्त नहीं मैं काया की,
संबल हूं जीवन में उसके,
अर्थ नहीं जो काम आऊ,
ओत प्रोत हूं रंग में उसके,
प्रीत है संबल मेरा भी ,
काया का सौंदर्य नहीं हूं,
मन की पूरित नक्श हूं ,
गढ़ी हुई हूं खुद की ,
नूर है मुझमें ,
अक्श है उसका,
अन्तःसम्बल हूं मैं उसका,
वह बसा है मुझमें रोम रोम में,
है निहित वो मुझमें संबल जैसे,
हर पल है मुझमें साथ खड़े,
हो साथ नहीं तो क्या गम है,
मुझमें है वह क्षण- क्षण में,
हूं साँस नहीं हूं डोर नहीं,
बस हर पल हूं साथ खड़ी।
यथार्थ©©

मंजिल





⏳📔✒️🏛️  फोटोग्राफी

पड़ाव#ठहराव*मंज़िल 🎊

🤔😐

कुछ वक्त ठहर बैठ जाती हूं,
हां ,बस कुछ वक्त ही तो,
रुक देख तू खुद को पहले,
है यह दो पल की उजियारी,
या है तेरा लक्ष्य यही,
या है पड़ाव तेरे मन का ,
हां, अब समझा रे मन तू,
है पड़ाव बस तेरे मंजिल का,
कुछ वक्त ठहर और ,
खुद को ढ़ूढ़,
है आसमान तेरी मंजिल,
नभ में बन नादान परिंदा,
सीख और तू आगे बढ़ ,
बस आगे बढ़.....

यथार्थ©

Saturday, August 14, 2021

राष्ट्र प्रेम का यथार्थ चित्रण


है राष्ट्र प्रेम इतना तो भावुकता क्यों एक दिन का,
सम्मान हो हर पल का तुममें चाहे हो कोई भी दिन,
नहीं सिखाया कभी उन्होंने राष्ट्रप्रेम एक दिन का,
कर्म और कर्तव्य जुड़ा हो हर पल इस मिट्टी से,
लहूं से सिंचित इस धरती को हरियाली से भर दो न,
मोल न हो यहां प्राणवायु इतना तो तुम कर दो न,
भूख से पीड़ित कोई मानस न सोए इस मिट्टी पर,
मत करो अपमानित अन्न का है वह भी लहूं किसानों का,
अन्नपूर्णा है माँ हमारी तब क्यों किंचित है किसान ,
है राष्ट्र प्रेम इतना तो भावुकता क्यों एक दिन का ,
बेड़िया आजाद होने का मतलब हो स्वयं सबका अपना निर्णय,
आजादी पले बढ़े बच्चों में हो नए विचार सृजन ,
न हो क्लेश लोगों में इतना बन जाये एकाकीपन,
जाति है सबका स्वाधिकार मानवता में भेद ये है कैसा ,
कतरा-कतरा रक्त की बूंदे चाहती थी आजाद परिंदे ,
फिर क्यों कुंडित पड़े हुए है गली गली में लोग यहाँ,
है राष्ट्र प्रेम इतना तो भावुकता क्यों एक दिन का,
जल है गंगा जिस मिट्टी में फिर क्यों दूषित करते हम,
धरा सनी है रक्त से वह भी मानी जाती माँ ,
आज लदी है पर्वत जैसे कूड़ो से ,
धर्म है शान जिस धरा पर फिर क्यों लुट जाते है लोग,
रक्त आज भी अर्पित होता शहीद यहाँ है हर कोने में,
जान है वह राष्ट्र की अपनी फिर क्यों सम्मान नहीं आँखों में,
है राष्ट्र पर  इतना तो भावुकता क्यों एक दिन का ,
राष्ट्रगान है कंपन सा छेड़ जाता है जर्रा -जर्रा ,
अर्पण भी है तर्पण भी है ,आन बान और शान भी है,
देश है तो हम है ,हो नब्ज -नब्ज और पल - पल में,
राष्ट्रप्रेम और कर्तव्य हमारा ,जल ,मिट्टी ,वायु हो शुद्ध ,
ऐसा हो कर्तव्य सभी का ,देशप्रेम हो जर्रे-जर्रे में ,
हो बेड़ियों से आजाद यहाँ हर कोई ,
स्वतंत्र हो विचार सभी के ,
देश है हर पल अपना ,
हम भी हो हर पल उसके ।
जय हिंद ,जय भारत 


महिमा यथार्थ ©©

Saturday, August 7, 2021

प्रकृति माँ

वह खामोश सी है आभा में ,
धैर्य ही है उसका स्वभाव,
उसकी भी है अपनी सीमा ,
उल्लंघन है विनाशक परिणाम,
सहन शक्ति है  भरी हुई,
दहसत है उसकी मर्यादा,
लगातार उच्छिन्न किया है हमने उसको,
जीवनदायनी जो है हमारी,
प्राण वायु का हुआ अपमान और ,
ख़रीदे प्राण वायु, उसमें भी है ,
कुंठित हुई वह जिसने काटा उसने रखा,
बड़े -बड़े घरौंदे उनके ,प्राणवायु बिकी भी उनसे,
लाचारी में तड़पता किंचित न वायु मिली न घरौंदा ,
लगातर उजड़ते उसके घरौंदे ,त्रस्त हुई अपमान से वह ,
ऐसा आया झंझावात सब हो गए बिना घरौंदे,
सारा संसार है उसकी कोख ,है सब उसके अपने ही,
फिर वह कैसे सहती यह भिन्नता कैसे धैर्य वह रख पाती,
हुआ विखंडन त्रस्त हुए सब फिर भी खत्म हुआ न यह,
 शीतलता है उसकी काया रौद्र है उसका उफान भी,
अग्नि है प्राण तत्व भले ही रौद्र है उसकी ज्वालामुखी,
न कर क्रोधित उसके मन को विखंडन है उसकी अग्नि,
जब वह अपना आपा खोती ,महाप्रलय निश्चित ही है,
है नही रोकना प्रलय उसके हाथ ,
अनावश्यक हो न कुछ भी ,है वह उसकी पूरी ऊर्जा,
ऊर्जा नहीं है वह उसका ही अंश ,
मत दो पीड़ा उसके मन को,
 है वह हमारी पृथ्वी माता ....


महिमा सिंह यथार्थ अभिव्यक्ति©©



Sunday, August 1, 2021

मौन अभिव्यंजना है


मौन


मौन भी अभिव्यंजना है ,
समझ सको तो समझो,
मौन अर्थ है शांत रहने की अभिलाषा का,
मौन है कि सामने वाले को कोई रुचि नहीं है,
मौन मतलब है कि परेशान मत करे कोई ,
मौन अभिव्यक्ति है कि कुछ मत और पूछो,
मौन चाहता है कि कुछ वक्त सुकून हो ,
मौन रहना अपमान नहीं आपका ,
मौन पर्याय नहीं है कि आपका कोई मूल्य नहीं है,
मौन अर्थ है कि सामने वाला शांतप्रिय व्यक्ति है,
मौन अर्थ है अनकहे अल्फाज़ो का ,
मौन अर्थ नहीं है स्वीकारोक्ति का ,
मौन अर्थ नहीं है कि अपने मर्जी के हिसाब से,
 सोच बना लेने का ,
मौन अभिव्यंजना है परन्तु कुछ भी सोच लेने का नहीं,
मौन अभिव्यक्ति की आजादी है किंतु स्वयं के ईच्छा की ,
मौन अभिव्यंजना है , अथाह सागर जैसे अर्थो का ,
मौन अकथनीय ,अप्रतिम है समझ का ,
न कि गलत तरह की सोच का अविर्भाव है ....

✍️एआई का उपयोग-प्रभाव और दुष्प्रभाव

                         एआई  का उपयोग-प्रभाव और दुष्प्रभाव एआई जिसका पूरा नाम हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता है ,जैसा की शब्दों में ही अर्थ ...