✨🖋️📜 सोच - चाहत हर मन की ⏳✒️
आजाद रूह - प्रेम
न जाने क्यों
एक नहीं !
उनकी अकड़ को ठेस दे जाता ,
अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह जैसा उन्हें लग जाता,
मन को मानो खंडित कर जाता,
गुरुर को मानो चोटिल कर जाता,
क्यों है इतनी कमजोर कड़ी,
एक नहीं से टूट जाती!
प्रीत पसंदीदा समुंदर जैसा है ,
जिसमें डूबे तो डूबता जाता ,
अनन्त ,असीम गहराइयों तक,
मगर मर्जी प्रीत की दोनों ओर हो !
अस्तित्व है उनका भी तो ,
कठपुतली न है वो धरती पर,
नारी प्रीत करे है डूब कर,
हो सम्मान और प्रेम हो ,
फिर क्यों?
तोड़ा जाता अन्तर्मन उसका ,
खंडित कर दी जाती उनकी अस्मिता ,
क्यों चोटिल कर दी जाती विश्वास,
वस्तु नहीं जो हासिल हो ,
सृजन और शक्ति है उनमें ,
स्वतंत्र ईच्छा सम्पूर्ण प्रेम है उनका !
" प्रीत होइ पंछी के जैसा ,
उन्मुक्त गगन हो उसका घरौंदा,
कण -कण प्रकृति हो उनका अपना ,
आजाद रूह ,पहचान प्रिया की "
महिमा यथार्थ©©