मेरी भवनाएं-3
"मुझे दिन उजालें में तो तोड़ सकते हो ,मग़र
तुम्हे मालूम नहीं ,हर रात मेरा ख़ुदा मुझे जोड़ जाता है ,
जो हर सुबह मुझे सहलां कर जगा जाता है!"
तमाम लोग क्या सोचते होंगे किसी को नहीं पता ,मुझे याद है कि मैं एक बार बोली अपनी माँ से की मेरे दिमाग में ये सारी बातें चलती है जब भी अकेले बैठती हूं,तब उन्होंने कहां की हम लोग भी सोचा करते थे ,कभी बोल नहीं पाए ,कुछ कर नहीं पाए,फिर सामाजिक जीवन में इतनी व्यस्तता बढ़ गयी,पढ़ाई, लिखाई, शिक्षण कार्य कि सब पीछे छूट गया ।
मैं अपनी सोच अपने पास रखकर सब खत्म नहीं होने देना चाहती हूं ,इसलिए मैं लिखती हूं ताकि शायद कुछ बदलाव दे सकूँ ,इस बात में कोई शक नहीं है कि इसकी हिम्मत भी मेरे परिवार के भरोसे और सीख की ही देन है ।
मुझे महसूस होता है मेरे अंदर की निर्मलता ,सोच जो मुझे बहुत ही सकारात्मक दृष्टिकोण से भरता रहता है, जब से सारी बातें समझ आने लगी महसूस होता है कि आख़िर ये प्रकृति को महसूस कर पाना,संवेदनाओं को महससू करना, मेरा आत्मबल मुझे क्यों अलग बनाता है।
यह ऐसा है क्योंकि इसके पीछे निर्मलता ही है मेरे अंदर जो कुछ भी है वह एक परिणाम है मेरे माता -पिता की साधना ,आध्यात्मिकता,धैर्य ,संतोष मैंने कभी उन्हें इस बात से परेशान होते नहीं देखा कि सामने वाले के पास क्या है और उनके पास क्या नही है।
उन्होंने हमारे जन्म से लेकर सपनों में हमेशा शिक्षा, एक व्यवस्थित जीवन ,स्वतन्त्र माहौल के अलावा कु छ उम्मीद ही नहीं कि चाहे उनके पास था या नहीं या अभी है या नहीं। उनके अंदर की निर्मलता ही हमारी सोच का परिणाम है। मेरी बहन की सोच उसकी स्वतन्त्रता, जो मुझे प्रेरणा देता है कि उसने अब तक सिर्फ वह चुना है जिसे वह मानती है कि इससे किसी का दिल नहीं दुःखेगा, उसका प्रेम ,उसकी जिम्मेदारी सब उसे लोगों से बहुत अलग बनाता है वह खुद से ज्यादा दूसरों के लिए जीती है ,ये सब सोच एक सकारात्मकता का प्रतीक है जो कहिं न कहीं परिवार का आध्यात्मिक झुकाव मानो या एक अनन्त सकारात्मकता का स्रोत जिसे ईश्वर मान लो या कोई ऊर्जा जिसका सकारात्म जुड़ाव है । आध्यत्मिकता और अंधभक्ति में कम फर्क है जो बहुत फर्क डाल देता है आपकी सोच ,समझ ,खान -पान पर।
मेरे लिखने से मेरे काम में व्यवधान नहीं होता है क्योंकि मैं अपने को लिखती हूं मेरा कर्म मेरा है उस पर मेरा ध्यान हमेशा रहता है!
एक चीज लोंगो से सीखा है
"जब आपके पास कुछ नहीं है तब भी आप संतुष्ट हो ,तब लोगों को लगता है किस्मत खराब है,
जब आपके पास आवश्यकता भर है एक अच्छी स्थिति है और आप तब भी शांत हो ,परे हो दिखावे से ,तब लोग कहते है कि अरे किस्मत साथ दे गई !"
कर्म को किस्मत का नाम देना ,धैर्य को किस्मत का नाम देना क्या सही है?
किस्मत को सकारात्मकता,ऊर्जा से भी देखा जा सकता है लेकिन आवश्यक है कि अपने अंदर की निर्मलता को पहचाने हम सबसे पहले,अच्छा सोचे लोगों के लिए चाहे वह कोई भी हो,आप खुद को ही हमेशा शांत पाओगे ,यही है सोच का जादू!
आगे सफर जारी रहेगा .....
राधे राधे✍️
महिमा सिंह©
"मुझे दिन उजालें में तो तोड़ सकते हो ,मग़र
तुम्हे मालूम नहीं ,हर रात मेरा ख़ुदा मुझे जोड़ जाता है ,
जो हर सुबह मुझे सहलां कर जगा जाता है!"
तमाम लोग क्या सोचते होंगे किसी को नहीं पता ,मुझे याद है कि मैं एक बार बोली अपनी माँ से की मेरे दिमाग में ये सारी बातें चलती है जब भी अकेले बैठती हूं,तब उन्होंने कहां की हम लोग भी सोचा करते थे ,कभी बोल नहीं पाए ,कुछ कर नहीं पाए,फिर सामाजिक जीवन में इतनी व्यस्तता बढ़ गयी,पढ़ाई, लिखाई, शिक्षण कार्य कि सब पीछे छूट गया ।
मैं अपनी सोच अपने पास रखकर सब खत्म नहीं होने देना चाहती हूं ,इसलिए मैं लिखती हूं ताकि शायद कुछ बदलाव दे सकूँ ,इस बात में कोई शक नहीं है कि इसकी हिम्मत भी मेरे परिवार के भरोसे और सीख की ही देन है ।
मुझे महसूस होता है मेरे अंदर की निर्मलता ,सोच जो मुझे बहुत ही सकारात्मक दृष्टिकोण से भरता रहता है, जब से सारी बातें समझ आने लगी महसूस होता है कि आख़िर ये प्रकृति को महसूस कर पाना,संवेदनाओं को महससू करना, मेरा आत्मबल मुझे क्यों अलग बनाता है।
यह ऐसा है क्योंकि इसके पीछे निर्मलता ही है मेरे अंदर जो कुछ भी है वह एक परिणाम है मेरे माता -पिता की साधना ,आध्यात्मिकता,धैर्य ,संतोष मैंने कभी उन्हें इस बात से परेशान होते नहीं देखा कि सामने वाले के पास क्या है और उनके पास क्या नही है।
उन्होंने हमारे जन्म से लेकर सपनों में हमेशा शिक्षा, एक व्यवस्थित जीवन ,स्वतन्त्र माहौल के अलावा कु छ उम्मीद ही नहीं कि चाहे उनके पास था या नहीं या अभी है या नहीं। उनके अंदर की निर्मलता ही हमारी सोच का परिणाम है। मेरी बहन की सोच उसकी स्वतन्त्रता, जो मुझे प्रेरणा देता है कि उसने अब तक सिर्फ वह चुना है जिसे वह मानती है कि इससे किसी का दिल नहीं दुःखेगा, उसका प्रेम ,उसकी जिम्मेदारी सब उसे लोगों से बहुत अलग बनाता है वह खुद से ज्यादा दूसरों के लिए जीती है ,ये सब सोच एक सकारात्मकता का प्रतीक है जो कहिं न कहीं परिवार का आध्यात्मिक झुकाव मानो या एक अनन्त सकारात्मकता का स्रोत जिसे ईश्वर मान लो या कोई ऊर्जा जिसका सकारात्म जुड़ाव है । आध्यत्मिकता और अंधभक्ति में कम फर्क है जो बहुत फर्क डाल देता है आपकी सोच ,समझ ,खान -पान पर।
मेरे लिखने से मेरे काम में व्यवधान नहीं होता है क्योंकि मैं अपने को लिखती हूं मेरा कर्म मेरा है उस पर मेरा ध्यान हमेशा रहता है!
एक चीज लोंगो से सीखा है
"जब आपके पास कुछ नहीं है तब भी आप संतुष्ट हो ,तब लोगों को लगता है किस्मत खराब है,
जब आपके पास आवश्यकता भर है एक अच्छी स्थिति है और आप तब भी शांत हो ,परे हो दिखावे से ,तब लोग कहते है कि अरे किस्मत साथ दे गई !"
कर्म को किस्मत का नाम देना ,धैर्य को किस्मत का नाम देना क्या सही है?
किस्मत को सकारात्मकता,ऊर्जा से भी देखा जा सकता है लेकिन आवश्यक है कि अपने अंदर की निर्मलता को पहचाने हम सबसे पहले,अच्छा सोचे लोगों के लिए चाहे वह कोई भी हो,आप खुद को ही हमेशा शांत पाओगे ,यही है सोच का जादू!
आगे सफर जारी रहेगा .....
राधे राधे✍️
महिमा सिंह©
5 comments:
वाह बहुत सुंदर अनुभूति की अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर अनुभूति की अभिव्यक्ति
Thoughtfull ,heart touching story
Well said 👏 👌 👍
Well said 👏 👌 👍
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